कविता

अनजान मुसाफिर

हम तेरे शहर में आयेगें
एक खानाबदोश की तरह
तेरे गलियों से गुजरेंगें
अनजान मुसाफिर की तरह

दीवाना हूँ में तेरा सनम
जिगर मोहब्बत का थामा है
दिल धड़कता है तेरे प्यार में जानम
पहन प्रेमी पागल की ये जामा

कहीं खो ना जायें हम तेरे
इश्क के इस भूल भूलैया में
कहीं पागल ना हो जायें हम
तेरे जुल्फों के इस तलैया में

यूँ तो कई हँसीना मरती थी
मेरे प्यार के इस साया में
कद्र ना किया था मैंने इन्हें
तेरे इश्क के इस माया में

तेरे जुल्फों में छुप जाऊँगा
तेरे आँचल में रहबर
तेरे नयनों की काजल ने
गिरफ्तार किया है दिलवर

फिर भी तुम मुझसे मिलना कभी
गंवारा ना किया था अब तक
तेरे नयनों की छुपी ख्वाब
तरजीह कभी हमको ना दिया

हम कहीं पागल ना हो जायें
आशिक मजनूँ की तरह
तेरी गलियों से गुजरता हूँ
अनजान मुसाफिर की तरह

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088