कविता

चांद मेरा

आज तुम चाहे मत निकलो चांद
परवा नहीं
चमकेगा टुकड़ा मेरे दिल का
तुम जलाना नहीं
निकला हैं आज बरसों के बाद
अब बदरी तू भी छाना नहीं
हैं किस्मत में मेरी ये ही  रोशनी
अब उससे आगे मैंने भी कुछ मांगा नहीं
चांद को तो रात चाहिए चमक ने के लिए
मेरा चांद तो हर दिन हर रात हर पल के लिए हैं
ए चांद तेरी चांदनी की चमक पराई सी हैं
चांद मेरे की तो रोशनी सो फीसदी अपनी ही हैं
आज तो रात को न सोऊंगी न ही दिन भर चैन होगा
बस एक में और सामने मेरे दिल का टुकड़ा होगा
रब करे न बीते ये पल,दिन और रात
सुनती रहूं में मेरे दिलके टुकड़े की ही आवाज
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।