लघुकथा

वापसी 

खुशी पढ़ी-लिखी आजाद खयालातों वाली लड़की है।उसने अपनी उच्च-शिक्षा अपने गाँव व परिवार से दूर रहकर शहर में पूर्ण की । शहर में अकेले रहने के कारण उसको कुछ आदतें ऐसी लग गई जो गाँव के जीवन में उन्हें ठीक नहीं माना जाता । इन दिनों खुशी कुछ महीनों शहर के कोलाहल से दूर अपने गाँव में तैयारी करने की सोचकर आई हुई थी । अब उसे छोटे भाई-बहिन का निश्छल प्यार के साथ मम्मी-पापा की समझदारी भरी टोका-टोकी भी मिलने लगी जो उसे ठीक नहीं लगती । उसे कोई अलसुबह जगाता तो गुस्सा आता । एक दिन गाँव की व परिवार जनों की टोका-टोकी से तंग आकर वह बिन कहे शहर आ गयी । अब वह तैयारी के साथ-साथ किसी जाॅब की तलाश में रहने लगी । गाँव से आने के बाद पहली बार उसे शहर के लोगों के व्यवहार में कुछ अजनबीपन के साथ कोरा दिखावटीपन सा महसूस होने लगा था । अब उसे बंद कमरों की एकाकी जिंदगी बुरी लगने लगी थी । पिछले दो दिन से बिन जगाएं अलसुबह  उसकी नींद खुल जाती है । कभी-कभी अकेले में अपने छोटे भाई-बहनों की याद कर मुस्कराने लगती । गाँव से आने के बाद उसने किसी को भी फोन नहीं किया और ना ही फोन उठाया । तीसरे दिन सुबह-सुबह दरबाजे से दस्तक की आवाज आई खोला तो सामने पापा खड़े थे । खुशी पापा को देख उनके लिपटकर जोर जोर से रोने लगी । पापा मैं अब यहाँ नहीं रहूँगी । मुझे अब बंद कमरों में घुटन सी लगने लगी है । नहीं, बेटा रोना नहीं … हम भी तुझे अकेला कहाँ छोड़ना चाहते हैं पर बेटे तेरी पढ़ाई की खातिर …अब तुम गाँव में रहकर आॅन-लाइन तैयारी कर लेना । मैं घर में सभी को समझा दूंगा अब कोई भी तुम्हें पढ़ने में व्यवधान नहीं डालेगा । नहीं पापा, ऐसा कुछ भी नहीं है … और   बाप-बेटी शहर से गाँव बाली बस में बैठ गए । बहुत दिनों के बाद खुशी के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई दे रही थी ।

— व्यग्र पाण्डे 

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201