कविता

अंतिम यात्रा

आगमन में इंसान के
बजते हुए ढोल तांसे
विदा के वक्त फिर यह रोना कैसा
हंसी खुशी विदा करों न यारों
जो सफर गुजरे खुशनुमा
कहकहे लगाओ
खुश हो
फूल बरसाओ
कि यार निकला है
अपने अगले सफर पे
रो रो क्यों करते अपशकुन हो
यात्रा निर्विघ्न हो
एक नारियल तो फोड़ों
हरी झंडी तो दिखाओ
❤️

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020