कविता

शिशिर

शिशिर ऋतु के आगमन के साथ
हमारे रहन सहन में
बदलाव आ ही जाता है,
गरीब और मध्यम वर्ग के जीवन में
असर साफ दिख जाता है।
निराश्रित, असहायों, मजदूरों
रोज खाने कमाने वालों पर
तमाम दुश्वारियों का मारक असर
पड़ने ही लगता है।
विद्यार्थियों की भी
परेशानी बढ़ ही जाती है,
आने वाली परीक्षा डराने लगती है,
ठंड पड़े या पाला
या फिर शीतलहर की मार
काँपते हुए भी तैयारी करनी ही पड़ती है।
गृहणियों की भी समस्याएं आम हैं
दिन के छोटा होने से
अपने लिए समय निकालना
मुश्किल हो जाता है।
बच्चों की तकलीफों का तो क्या कहें?
बेचारों को कैदी बन जाना पड़ता है।
नौकरी पेशा हो या मजदूर किसान
अमीर हो या गरीब
साधन संपन्न हो या सुविधाविहीन
हर वर्ग परेशान हो जाता है
अपनी अपनी विवशता, व्यस्तता के बीच
ये समय भी अच्छा या बुरा
आखिर बीत ही जाता है,
क्योंकि शिशिर अपनी खोल में
आखिर सिमट ही जाता है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921