लघुकथा

लघुकथा : कशमकश

“बहू,जिंदगी के बीस साल गुजार दिए सफेद साड़ी और सफेद ब्लाउज में,जबसे तुम्हारे बाबूजी नहीं रहे।आज तुम मेरे लिए लाल शॉल लाई हो!”
” माँ जी,आज आपका जन्मदिन है , साठ के आसपास आपकी उम्र है। आप तो खुले विचार की हैं फिर  परिधान में इतनी बंदिश क्यों?”
“बेटा ! अब तो कुछ वर्षों की मेहमान हूँ। बक्से में दो- दो सोने की चेन है। कभी हाथ नहीं लगाया।”
“आपकी कशमकश को मैं बखूबी समझती हूँ।  अब आप शॉल भी पहनेंगी और चेन भी।”
“बेटा इतनी जिद…!”
“माँ जी! आप ही तो कहती हैं हमे अपनी छोटी- छोटी इच्छाओं का भी सम्मान करना चाहिए।”
 नई बहू की जिद और  सम्मान भाव को देख  सास ने लाल शॉल ओढ़ ली।
— निर्मल कुमार डे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड nirmalkumardey07@gmail.com