कविता

बेचती है तरकारी

सुबह-सुबह जाती है बारी
बारी में खोजती है तरकारी
निहुर -निहुर कर देखती है
लता-पत्ता को हटाकर
तोड़ने की करती है तैयारी
बबुआ को बुलाकर
छोटी -सी बाँस की सीढ़ी से
तुड़वाती है तरकारी
मेहनत से तरकारी उगाती है
नीचे से आँचल फैलाती है
एक-एक कर टोकरी में
रखती है,बड़ी प्यार से
इसे बेचकर, कुछ पैसे लायेगी
गिरिडीह बाजार से
बोरे को बिछाई,जमीन पर बैठ
लेकर तराजू और बटखरे
भूख को पेट में दबाये
किलो-किलो बेचती रही
शाम तक ,बिक गई सारी सब्जियाँ
बच्चों के लिए ,ले ली थोड़ी जलेबियाँ
परिवार जनों के लिए राशन
और भी कुछ जरूरी समान
उसी टोकरी में भर ,शाम को आई
रास्ते में ले ली,घुटने के दर्द की दवाई
जिसे सोने से पहले वह रोज
कमजोर नसों में लगाती है
सुबह होते ही ,कृषि कार्यों में
अपने स्वामी का हाथ बँटाती है ।।

नेतलाल यादव

उत्क्रमित उच्च विद्यालय शहरपुरा, जमुआ,गिरिडीह, झारखंड, पिन कोड-815312 व्हाट्सएप-8294129071