हास्य व्यंग्य

खट्टा-मीठा : टोपीलाल के हसीन सपने

टोपीलाल का असली नाम तो कुछ और था, परन्तु वे अपने सिर पर हमेशा नेतागीरी की प्रतीक लाल रंग की टोपी लगाये रखते थे, इसलिए लोगों ने उनका नाम टोपीलाल रख दिया था और उनका असली नाम भूल गये थे। यों वे कभी-कभी ७२ छेदों वाली जालीदार टोपी भी लगा लेते थे, पर ज़्यादातर लाल टोपी ही लगाते थे।
पाँच साल पहले तक राज्य में उनकी पार्टी की सरकार होती थी। अपने मोहल्ले और क्षेत्र में वे नेता माने जाते थे। जो नहीं मानता था, उससे ज़बरदस्ती मनवा लेते थे। इसलिए लोग उनसे उलझने से बचते थे। वे काम क्या करते थे यह किसी को पता नहीं था, लेकिन वे पूरी ठसक से रहते थे।
सबकुछ ठीक चल रहा था कि केसरिया नाथ की सरकार बनते ही सब बदल गया। उनकी ठसक ग़ायब हो गई और वे अपनी टोपी और नाक बचाने की चिंता में रहने लगे। किसी तरह 5 साल का समय कटा और चुनाव आ गये। इसके साथ ही उनकी पुरानी ठसक वापस आ गयी।
उनको अपनी पार्टी का टिकट तो नहीं मिला, पर जिसको टिकट मिला वह भी उनको बहुत मानता था। इसलिए उनको चुनाव प्रचार में पूरा महत्व मिलता था और खर्च के लिए रुपये भी मिल जाते थे, जिनमें से आधे वे बचा लेते थे। खाना-पीना तो चलता ही रहता था।
ऐसे ही एक दिन वे शाम को चुनाव प्रचार समाप्त करने के बाद कुछ खा-पी रहे थे कि साथियों ने कुछ ज़्यादा ही पिला दी। टुन्नावस्था में ही वे लड़खड़ाते हुए अपने घर की ओर चले कि रास्ते में ही लुढ़क गये। किसी तरह दूसरों ने उठाकर उन्हें घर पहुँचाया।
घर पर उनकी पत्नी ने उन्हें बिस्तर पर लिटा दिया और रज़ाई ओढ़ा दी। शीघ्र ही वे निद्रावस्था में पहुँच गए और सपने देखने लगे।
सपने में उन्होंने देखा कि चुनाव परिणाम आ गये हैं और उनके नेताजी मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे हैं। चारों ओर लाल टोपियों और लाल-हरे झंडों की बहार है। आगे उन्होंने देखा कि सैफई में महोत्सव चल रहा है और वहाँ अधनंगी तारिकाएँ नाच रही हैं। वे देर तक उनके नृत्य और संगीत में खोये रहे।
सुबह जब उनकी आँख खुली तब भी वे सपनों की दुनिया में खोये थे। वहीं से चिल्लाये- “अजी सुनती हो ! हमारी पार्टी जीत गयी! हमारी सरकार बन गयी।”
यह सुनकर उनकी पत्नी ने डाँटकर कहा- “अभी से कैसे जीत गये? अभी तो पूरे वोट भी नहीं पड़े हैं।” यह सुनते ही टोपीलाल जी का नशा पूरी तरह उतर गया और वे आसमान से ज़मीन पर आ गये।
— बीजू ब्रजवासी
फाल्गुन कृ. २, सं. २०७८ वि. (१८ फ़रवरी, २०२२)