लघुकथा

सुखद एहसास

आवाज बंद नही हो रही, लगता है मामला कुछ ज्यादा ही गर्म दिख रहा है । दरवाजे के बाहर रमेश जी बिती बातों  को सोच ही  रहे थे, तभी चाचा चाचा की आवाज सुनाई दिया। रमेश जी के मुड़ते ही नजर के सामने दूध वाला दिख गया। रमेश जी परेशान, सवाल है की दूध का बरतन अन्दर से कैसे लाया जाय। रुको, आते हैं , कह कर रमेश जी घर के अन्दर गये तो उनके पांव ठिठक गये। बेटा- बहु के बीच वाक युद्ध जोरों का हो रहा था जो रमेश जी को देखते ही ब्रेक लग गया । रेणु दूध वाला , रमेश जी ने याद दिलाईं। रेणु रमेश जी की इकलौती बहु है जो किसी मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत है।
पापा दूध ले लीजिए बरतन मेज पर है जरा कुछ बातें इनको याद दिला दें । जब दूध लेकर रमेश जी आये तो बहु किचेन में चाय बना रही थी ।
रेणु बेटा , मामला सलट गया क्या ?
नहीं पापा , ये अपने जिद पर अड़े हुए हैं।
ओह! कोई बात नहीं रमेश जी ने लम्बी सांस ली ।
पापा चाय कहते हुए रेणु ने चाय की गिलास रमेश जी के हाथ में पकड़ाई। हाथ कांपने के कारण चाय गिलास में ही पिते थे ।
रमेश जी चाय की चुस्की के साथ बीते समय के आगोश में विचरण करने लगे।
रमेश जी को दो दिन पहले बहु ही गांव से लेकर आयी थी, लगा जीवन के अंत समय शायद कुछ खुशियां बटोरने का सौभाग्य प्राप्त हुआ पर नही ,बेटा आज भी पुरानी बातों के भ्रम जाल से बाहर नही आ पाया। आज भी जीवन का वो खटास कम नहीं हो पाया। रमेश जी के मना करने के बाद भी बेटे ने अलग रहने का फैसला लिया था क्योंकि बार बार पुछना या अपने किसी काम में पापा का रूकावट पैदा करना पसंद नही था। रेणु के लाख मना करने पर भी आकाश ने अलग शहर में ही बड़ा सा बंगला ले रखा था
एक पोता भी चार साल का हो गया पर रमेश जी ने कभी बेटे-बहु के घर नहीं आये। हां उनकी पत्नि का हमेशा आना जाना लगा रहा पर आज वह नहीं रही । अकेलेपन भी एक सजा है ,रमेश जी अपने बेटे को अच्छी तरह जानते थे की वह कभी भी हमें माफ नहीं करेगा पर बहु की जिद के आगे वह यहां आ गये। रमेश जी की आंखें भर आई।
कार की आवाज ने रमेश जी का ध्यान भंग किया , सोनु कार से उतरते ही दादा जी से लिपट गया , संसार का सबसे अनमोल खुशियों भरा अदभुत दृश्य जिसके इन्तजार में रमेश जी चार वर्षों से प्रार्थना करते रहे आज पुरा हुआ, जो बहुत ही भाग्यवान होते उसे ही पोते-पोती का प्यार मिल पाता है।
रमेश जी इस सुखद एहसास को संभाल नहीं पाये, अचानक सासें तेज हो गयी , पसीने से नहा गये । रेणु दौड़कर पानी लेकर आई।
पापा पापा जोर से चिल्लाई  ,सोनु के अलग हटते ही रमेश जी गिर पड़े । सोनु, हल्की आवाज में  रमेश जी ने पुकारा, सारा प्यार सोनु को देकर विदा ले लिए।
सच, कुछ भी हो पर संतान मोह का टुटना आदमी को खोखला कर देता है जो हवा की हल्की प्रवाह भी धाराशाई कर देती है। बेटे-बहु के आंखों में पश्चाताप के आंसु थे।
—  शिवनन्दन सिंह

शिवनन्दन सिंह

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