गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

इससे पहले कि ज़ख्म भर जाए,
ज़िन्दगी की क़बा उतर जाए।
यार वो अपना बोसा ले वापिस,
यार ये मेरा दर्द ए सर जाए।
हमको जंगल पसन्द आने लगा,
जिसको जाना है अपने घर जाए।
जुगनुओं की कहानी पढ़ते हुए,
चाँदनी का गला न भर आए।
वो जो रहती है मुझमें इक औरत,
मेरे अंदर न घुट के मर जाए।
तब समझना कि इंकलाब आया,
शोर जब ख़ामुशी से डर जाए।
शाहज़ादा भी तोड़े अपनी क़सम,
शाहज़ादी ‘शिखा’ मुकर जाए।
— दीपशिखा

दीपशिखा सागर

दीपशिखा सागर प्रज्ञापुरम संचार कॉलोनी छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)