लघुकथा

अधिकार

” क्या बात है बहू आज सुबह उठते ही रसोई में जुट गईं आप ।”
 जी पापा मीता ने चहकते हुए चाय का प्याला मेज पर रख दिया ।
अपना भी प्याला लेकर पास वाले कुर्सी में बैठ गई । “मोहित की चाय ”  वो अभी तक सो रहें हैं पापाजी।  मीता को काफी शौक था , लिखने का और मंचों पर काव्य पाठ करने का । विवाह के बाद
नये घर में खुश थी मीता । ससुर काफी सुलझे व्यक्ति और हिंदी -उर्दू साहित्य के अच्छे जानकार थे।
मीता खाली  समय में उनसे हिंदी की छन्द विधाएं सीखती और
अभ्यास भी करती ।
कई फेसबुक मंचों से भी जुड़ गई थी । धीरे -धीरे पहचान बनने लगी । कई मंचों से आमंत्रण भी आने लगे । कुछ अच्छे मित्र भी बन गए ।
” वाह आज तो सुबह से ही साहित्य गोष्ठी शुरू हो गई, पापा और तुम्हारीं । “
मोहित ने व्यंग भरी नजर से मीता को देखा ।
“चाय लाती हूँ आपके लिए ।”
” आपसे एक बात कहनी थी , बगल के शहर से मेरे दो मित्र पति-पत्नी आ रहें हैं , आज शाम को चार घंटे की कवि गोष्ठी है । मुझे भी आमंत्रण मिला है ,
” आप कहें तो मैं उन्हें रात के खाने पर बुला लूँ ।”
” क्या कहा तुमने?वो तुम्हारे फेसबुक मित्र जिन्हें मैं जानता तक नहीं , मंच पर गाने वाले मेरे घर में खाना खाने आएंगे ,
और तुम मंच पर कविता पाठ कर मेरी इज्जत की धज्जियां उड़ाओगी, मेरी  पत्नी हो पहचान काफी नहीं ?”
सोचा भी कैसे तुमने ?
मीता ये बातें सुन सन्न रह गई?
तो मेरा इस घर में कुछ भी नहीं?  जो तुम्हारे मित्र आतें हैं, उन्हें भी तो मैं नहीं जानती , मीता रुआंसी होकर बोली ।
सारी बातें सुन रहे थे मीता के ससुर जी । ये घर  मेरा है तुम दोनों का अधिकार बराबर है ‘जाओ बहू
काव्य-पाठ की तैयारी करो , मैं भी साथ चलूँगा।
— अनिता मिश्रा सिद्धि

अनिता मिश्रा 'सिद्धि'

पटना कलिकेत नगर बिहार