कविता

आई गरमी

जाड़े की मिजाज में आई नरमी
स्वागत करो आ रही है गरमी
जेठ बैशाख चैत जब है    आता
गरमी से तन मन ऊब       जाता
हाथ दिन रात पंखा   है    झेले
ठंडी हवा तब पास  रह   खेले
सूरज की किरणों से है   मिलता
धरातल दिन में गरम  से   तपता
गरमी से पसीना  तन से बहता
नीम तले सुकून तब      मिलता
कूलर पंखें की करो आवभगत
गरमी से यह करता बगावत
आईसक्रीम बन जाता है साथी
बेल का शर्बत मन को   भाती
खीरा ककड़ी आसानी से मिलता
ये फल मन को ठंडक है  दिलाता
दिन का सूरज आग बरपाता
पूनम की चाँद ठंडक पहुँचाता
शाम सबेरे मिलता कुछ राहत
दिन भर सूरज लगता है आफत
इस गरमी से अब कौन बचाये
लू लगने का डर भी सताये
काश ! इस गरमी से मिलता छुटकारा
इससे बेहतर था ठंडक बेचारा
जाड़े की मिजाज में आई है नरमी
करो स्वागत आ रही है गरमी

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088