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जीवनानुभव की दास्तां सुनाती हैं अशोक कुमार की लघुकथाएँ

पुस्तक समीक्षा

जीवनानुभव की दास्तां सुनाती हैं अशोक कुमार की लघुकथाएँ

पुस्तक : अँगूठे का दर्द
विधा : लघुकथा संग्रह
लेखक : अशोक कुमार ढोरिया
प्रकाशक : जिज्ञासा प्रकाशन, गाजियाबाद
प्रकाशन वर्ष : 2021
पृष्ठ : 108
मूल्य : 200/-₹
समीक्षक : डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा

साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. उमेश कुमार सिंह ने एकदम सटीक लिखा है, “लघुकथा वर्तमान समय की तेजी से लोकप्रिय होती विधा है। यह आकाशीय बिजली की तरह एक क्षण में कौंधती है, जिसका पाठक के मन पर लंबे समय तक गहरा प्रभाव रहता है।”
हाल के वर्षों में हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं में लघुकथा सर्वाधिक तेजी से लेखकों और पाठकों के बीच लोकप्रिय हुई है और इसका सुपरिणाम यह है कि आए दिन लघुकथा संग्रह प्रकाशित होकर हस्तगत हो रहे हैं।
ऐसे ही एक सद्य प्रकाशित लघुकथा संग्रह ‘अँगूठे का दर्द’ मेरे हाथों में है, जिसमें अशोक कुमार ढोरिया जी की विविधवर्णी 85 लघुकथाएँ संकलित हैं। इनमें सामाजिक विसंगतियाँ, नारी मन की कोमलता, पुरुष के अहं, सोशल मीडिया के प्रभाव, बाल मनोविज्ञान, मातृत्व भाव, कोरोना काल, बाज़ारवादी दृष्टिकोण, दोहरे चरित्र, नारी सुरक्षा, आम आदमी की पीड़ा, छीजते मानवीय रिश्ते, जीवन मूल्य, नैतिक और चारित्रिक कमज़ोरी इन सब विषयों पर उन्होंने खूब क़लम चलाई है।
जैसे-जैसे समाज में विरोधभास बढ़ते जाते हैं, वैसे-वैसे लघुकथा के लिये उर्वरा जमीन तैयार होती जा रही है। एक साहित्यकार, चाहे वह किसी भी विधा में लिख रहा हो, की दृष्टि और संवेदना एक आम आदमी की तुलना में कहीं अधिक सक्रिय होती है। इसी सक्रियता को वह अपनी रचनाओं में उतारता है। इस कारण समाज में होने वाली घटनाएँ अनेक रूपों में हमारे सामने आती हैं। अत्यंत निर्धनता में पले-बढ़े लघुकथाकार अशोक कुमार जी संप्रति पेशे से अध्यापक हैं। उनके पास अनुभव का खजाना है, जो उनकी लेखनी को धारदार बनाती है।
किसी भी महिला की सच्ची सहेली उसकी कोखजाया बेटी होती है, जो उसकी भावनाओं को भलीभांति समझती है। उसके सुख:दुःख में साथ निभाती है। अशोक जी ने इसकी खूबसूरत अभिव्यक्ति अपनी लघुकथा ‘रंगीन मिज़ाज’ में की है।
महिलाओं के लिए शिक्षा और आत्मनिर्भरता कितनी जरूरी है, इसे उन्होंने अपनी लघुकथा अभागिनी, उज्ज्वला और आत्मनिर्भर में बहुत ही सुंदर तरीक़े से चित्रित किया है।
गरीबी का दंश क्या होता है, इसे अशोक जी ने स्वयं बहुत ही करीब से देखा और महसूस किया है। उनकी कई रचनाओं में उसकी जीवंत अभिव्यक्ति भी की है। यथा, अँगूठे का दर्द, बदलता वक्त, डराने वाला कोट, इंसानियत की खोज, दरिद्रता, मजदूरी और मजबूरी, गरीब कौन, महागरीब आदि।
माँ की ममता असीम है। वह अपनी संतान के लिए कुछ भी कर सकती है। संतान के प्रति माँ का स्नेह सिर्फ मनुष्य ही नहीं, जीव-जंतुओं में भी देखा जा सकता है। अशोक जी की लिखी हुई ‘माँ का हौंसला’ एक ऐसी ही लघुकथा है, जिसमें एक मादा तोता अपने नवजात शिशु की रक्षा के लिए एक खूँखार गोह से लड़ जाती है।
डॉक्टर धरती के भगवान माने जाते हैं। आजकल इस पवित्र पेशे से जुड़े कुछ डॉक्टर पैसों के लालच में लोगों के जीवन से कैसे खिलवाड़ करते हैं, यह बात अशोक जी ने ‘सर्जरी का रहस्य’ में बताया है।
शिक्षक और साहित्यकार समाज के जागरूक पहरूए होते हैं, जो देश और समाज का पथ-प्रशस्त करते हैं। जब भी कोई संकट आता है, ये अपनी पूरी ऊर्जा के साथ अपने कार्य में लग जाते हैं। संयोगवश अशोक कुमार ढोरिया जी एक साहित्यकार होने के साथ-साथ एक शिक्षक भी हैं। पिछले दिनों जब वैश्विक महामारी कोरोना ने अपने क्रूर पंजों से संपूर्ण मनुष्य जाति ही को अपनी चपेट में लेने का प्रयास किया, तब अशोक कुमार जी ने उससे बचने के लिए अपनाए जाने वाले सावधानियों पर आधारित अनेक लघुकथाएँ लिखीं। इनमें कुछ प्रमुख हैं, कड़वी बात, पास, पुलिस थेरेपी, फोटो वाला दान, अंधेरे में उजाला, कोरोना, पलायन, नकाबपोश कोरोना, नासमझी, अंतरद्वंद्व, सोसल डिस्टेंसिंग, तिरछे तीर, प्रतिद्वंद्वी, समझदारी, मुद्दा, जिज्ञासा, मास्क, मुरझाए फूल, नजर का चश्मा, झूठा सच।
अशोक जी ने पर्यावरण संरक्षण पर आधारित कई लघुकथाएँ लिखी हैं। इनमें प्रकृति की बेड़ियाँ, यज्ञ से बड़ा पुण्य, पृथ्वी दिवस उल्लेखनीय हैं। इस प्रकार आजकल के ढोंगी बाबाओं की असलियत उजागर करती हुई एक जबरदस्त लघुकथा है- इंसानियत का पाठ।
यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि विकलांगता मनुष्य के तन से नहीं, मन से होती है। अशोक कुमार ने अपनी लघुकथा दिव्यांग कौन, विकलांगता और दिव्यांगता में यही सिद्ध करने का प्रयास किया है।
आधुनिक भौतिकतावाद की चकाचौंध में आजकल लोग रिश्ते-नाते तो छोड़िए, अपने माता-पिता के प्रति स्नेह भाव और उनके त्याग को विस्मृत कर उन्हें घर से निकालने या वन में छोड़ देने से भी नहीं हिचकते हैं। यह अमानुषिकता का इंतिहा है। अशोक जी ने अपनी लघुकथा मुक्ति और ममता शीर्षक की लघुकथाओं में इस कटू सत्य को उजागर किया है।
आज हमारे आसपास ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जिनके लिए बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपया है। अशोक कुमार ने इस तथ्य को अपनी लघुकथा पेंशन वाला बाप, ममता और तीर्थ शीर्षक की लघुकथाओं में बताया है।
कन्या भ्रूण हत्या एक सामाजिक कलंक है। इसके सम्पूर्ण उन्मूलन के पक्षधर अशोक कुमार जी ने अपनी झूठ और सच एवं निर्णय शीर्षक की लघुकथाओं में इस गंभीर मुद्दे को उठाया है।
इस संग्रह की अधिकांश लघुकथाएँ सशक्त है। घटनाएँ और पात्र काल्पनिक नहीं, जीवंत लगते हैं। ये लघुकथाएँ पाठकों के समक्ष सिर्फ समस्याएँ ही नहीं रखतीं, बल्कि समाधान भी सुझाती हैं। मानव समाज को सीख देती हैं, साथ ही साथ सामाजिक विसंगतियों को देखने की एक नयी दृष्टि भी। रचनाओं की भाषा सहज, सरल, स्वाभाविक और सम्प्रेषणीय है। संवेदना और भावना के स्तर पर अशोक कुमार ढोरिया जी की लघुकथाएँ पाठकों को उद्वेलित करती हैं। उनकी लघुकथाएँ पाठकों को न केवल सोचने को मजबूर करती हैं, बल्कि उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास भी करवाती हैं।
पुस्तक ‘अँगूठे का दर्द’ का आवरण पृष्ठ बहुत ही आकर्षक है। इस पुस्तक में कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ रह गई हैं, जो कहीं-कहीं खटकती भी हैं। आशा है आगामी संस्करण में सुधार लिया जाएगा। मुझे आशा ही नहीं वरन् पूर्ण विश्वास है कि भविष्य में समाज को अशोक कुमार जी से और भी बेहतर लघुकथाएँ मिलती रहेंगी।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़
9827914888

*डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा

नाम : डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा मोबाइल नं. : 09827914888, 07049590888, 09098974888 शिक्षा : एम.ए. (हिंदी, राजनीति, शिक्षाशास्त्र), बी.एड., एम.लिब. एंड आई.एससी., (सभी परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण), पीएच. डी., यू.जी.सी. नेट, छत्तीसगढ़ टेट लेखन विधा : बालकहानी, बालकविता, लघुकथा, व्यंग्य, समीक्षा, हाइकू, शोधालेख प्रकाशित पुस्तकें : 1.) सर्वोदय छत्तीसगढ़ (2009-10 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी हाई एवं हायर सेकेंडरी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 2.) हमारे महापुरुष (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 10-10 प्रति नि: शुल्क वितरित) 3.) प्रो. जयनारायण पाण्डेय - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 4.) गजानन माधव मुक्तिबोध - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 5.) वीर हनुमान सिंह - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 6.) शहीद पंकज विक्रम - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 7.) शहीद अरविंद दीक्षित - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 8.) पं.लोचन प्रसाद पाण्डेय - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 9.) दाऊ महासिंग चंद्राकर - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 10.) गोपालराय मल्ल - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 11.) महाराज रामानुज प्रताप सिंहदेव - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 12.) छत्तीसगढ रत्न (जीवनी) 13.) समकालीन हिन्दी काव्य परिदृश्य और प्रमोद वर्मा की कविताएं (शोधग्रंथ) 14.) छत्तीसगढ के अनमोल रत्न (जीवनी) 15.) चिल्हर (लघुकथा संग्रह) 16.) संस्कारों की पाठशाला (बालकहानी संग्रह) अब तक कुल 16 पुस्तकों का प्रकाशन, 60 से अधिक पुस्तकों एवं पत्रिकाओं का सम्पादन. अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादक मण्डल सदस्य. मेल पता : pradeep.tbc.raipur@gmail.com डाक का पता : डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा, विद्योचित/लाईब्रेरियन, छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम, ब्लाक-बी, ऑफिस काम्प्लेक्स, सेक्टर-24, अटल नगर, नवा रायपुर (छ.ग.) मोबाइल नंबर 9827914888