लघुकथा

रत्नगर्भा

अपनी बिटिया मणि की अँगुली थाम वह रोज शाम को अपनी व्यस्ततम दिनचर्या में से कुछ पल चुरा कर लहरों से बातें करने आ जाती थीं । सागर किनारे निर्जन तट पर अक्सर बैठ कर ज्वार-भाटों से बातें करती थी । उसके पति विराज भी अपनी वंशबेल की चाह में अवैध तरीके से भ्रूण परीक्षण करवा कर अभी तक दो बार उसके मातृत्व को तिरोहित कर चुके थे ।

इस बार चार महीने हो चुके थे वह यह बात अपने पति से छूपा ली थी । भला हो उस डॉक्टरनी साहिबा का जिनकी मदद से वह किडनी स्टोन के इलाज के बहाने अपना नियमित चेकअप करवा रही थी ।
सागर की लहरों में खोई वह भूत भविष्य एवं वर्तमान से अपनी शिकायत कर रही थी ।
अचानक ऐसा लगा मानों उसका पूरा शरीर ही नहीं वज़ूद भी हिल गया हो । खुद को संयत कर अपने आसपास नज़रें दौड़ाई कोई तो नहीं ! फिर यह कौन मुझे…विचलित कर रहा है ? पहली बार अजन्मा की लात खाकर भी होठों पर मुस्कान छा गई।
“माँ ओ…माँ मैं हूँ तेरा अंश, क्या तुम मुझे अमानुषिक व्यवहार करने वाले अपनों से दूर ले जाकर मेरी परिवरिश करने का हिम्मत जूटा सकती हो ?”
“मैं माँ हूँ; मुझमें प्रयाप्त हिम्मत है ।”
“तो फिर देर मत करो माँ उठो और आगे बढ़ो अपने नाम के साथ, इस रत्नगर्भा का भी नाम रौशन करने की हिम्मत जुटाओ माँ ।”
रत्ना कुछ पल को ठिठकी पुनः घर के विपरीत दिशा में चल पड़ी, अपनी बिटिया का हाथ थाम कर ।
“धन्यवाद माँ मैं सिर्फ तेरा अंश हूँ पापा का जहरीला वंशबेल बनने से तुमने मुझे बचा लिया ।”
“तुम मेरे नाम के साथ अपना नाम जोड़ कर मेरा हौसला बढ़ाये हो । सच में तुम रत्ना के रत्नगर्भा हो । तुम्हें बचाकर मैं नारी धर्म जरूर निभाऊँगी यह वादा है खुद से भी और तुमसे भी ।”
— आरती रॉय

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - arti.roy1112@gmail.com