कविता

अहमियत

 

समय की मार से

भला अब तक बचा कौन है,

ऐसे में अहमियत की अहमियत क्या है?

स्वार्थ लोभ में पड़ा अब आदमी।

अपनों की कौन कहे

माँ बाप की अहमियत को भी

धक्का दे रहा है आदमी।

अपवादों की बात तो कीजिए मत

रिश्तों को भी अहमियत

अब कहाँ दे रहा है आदमी।

हर कदम पर स्वार्थी हम हो गए

लाभ हानि को देख अब

अहमियत देने लगा है आदमी।

आधुनिकता के रंग का बुखार इतना है,

अहमियत का ताप ठंडा हो गया है,

क्या कहें? किसको कहें? और क्यों कहें?

अहमियत की चाल में उलझ

खुद मर गया है आदमी।

अहमियत की अहमियत भी

बची भला है अब कहाँ?

खुद को भी अब अहमियत

भला देता कहाँ अब आदमी?

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921