कविता

हम

ना पाने की जिद्द
ना खोने का ग़म
इस सफर में अब
ऐसे हो गये हैं हम

ना उम्मीद किसी से
ना अब कोई चाहत है
अकेलापन साथी अपना
खैर!अब तो राहत है

ना मैं किसी का हुआ
ना मेरी ही है अब कोई
शुन्य के आगोश में
मेरी आंखें खूब सोई

ना मिलना किसी से
ना कोई भी आयेगा
अकेला है हर कोई यहां
और अकेला ही जायेगा

ना बात करनी किसी से
ना कुछ भी दिखाना है
मज़ाक बन कर रहोगे
कुछ ऐसा ये ज़माना है

ना कहीं धूप में हूं
ना कोई छाया है
मेरे संग तो अकेला
मेरा ही एक साया है

ना दोस्तों की महफ़िल
ना दुश्मनों की टोली है
एक ऐसे पड़ाव पर हूं
जहां खाली मेरी झोली है

ना बारिश हुई है इधर
ना अब कोई आसार है
मेरी कहानी स्थिर है
पुतला बस यही किरदार है

ना सफ़र में हूं
ना कोई ठिकाना है
ना सुनना है कुछ
ना कुछ बताना है

ना आंसू आते हैं
ना कोई मुस्कुराहट है
गजब का अभिनय किया
जिस्म में बस सरसराहट है

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733