राजनीति

फ्री पॉलिटिक्स – श्रीलंका का पतन

फ्री की पॉलिटिक्स का परिणाम अगर देखना है तो आप आज के श्रीलंका को देख सकता है श्रीलंका जो कभी टूरिज्म के लिए जाना जाता था देश की 12% जीडीपी टूरिज्म पर निर्भर करती थी आज महंगाई और कर्ज से इतनी बुरी तरह त्रस्त है, की जनता का सामान्य जीवन जीना भी बेहाल हो गया। महंगाई अपने चरम पर है, पूरा देश कर्ज में डूबा हुआ है। इसके पीछे यदि कोई मुख्य कारण है तो वह यही फ्री की पॉलिटिक्स क्योंकि महिंदा राजपक्षे जो यहां के नेता है अपनी पार्टी की विजय के लिए इन्होंने कई वादे किए उनमें से एक वादा यह भी था कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वह श्रीलंका में 15 परसेंट वेट को आधा कर देंगे । जिससे हुआ यह कि ग्रोथ और प्रोडक्शन तो बढ़ नहीं पाया बल्कि वेट से सरकार को मिलने वाला टैक्स भी आधा रह गया जिसके कारण सरकार को अरबों रुपए का नुकसान हुआ। सरकार ने सोचा की कर्जकम करने के लिए नोट ज्यादा छाप दिए जाएं, जिसके कारण महंगाई इतनी बड़ी की अब नियंत्रण नही हो रही। उसके बाद खेती में पूरी तरह से ऑर्गेनिक खेती को अनिवार्य करने के कारण उत्पादन में जो कमी हुई उसके कारण अनाज और खाने पीने की चीजें और अधिक महंगी हो गई जिससे श्रीलंका की आर्थिक कमर टूट चुकी थी। क्या आप सोचते हैं की फ्री में मिली सुविधा और संसाधनों के कारण कोई देश कैसे कंगाल हो गया तो आज इसका उदाहरण आप श्रीलंका के रूप में देख सकते हैं । जहां जनता के टैक्स को कम करके पूरा देश आज महंगाई की मार झेल रहा है। कोरोना महामारी के कारण वैसे ही सरकार अरबों रुपया चिकित्सा व्यवस्थाओं में खर्च हुआ और साथ ही इस महामारी के कारण श्रीलंका का टूरिज्म भी ध्वस्त हो गया। आज श्रीलंका में महंगाई के यह हाल है कि दूध ₹300 लीटर नारियल तेल ₹900 लीटर चावल ₹480 किलो दाल ₹600 के लोग हाथी यही आदि कई ऐसी खाने पीने की चीजें सामान्य जनता को कम दामों में मिलनी चाहिए उनकी कीमत आसमान छू रही है, प्याज ₹240, आलू 340 रु किलो, लहसुन 720 रु किलो ये भाव सुनकर ही जनता की भूख मर जाये। जहां भारत में 100 रु में पेटभर खाना उपलब्ध होता है वहां श्रीलंका में आपको खाना बनाने के लिए भी हजारों खर्च करने पड़ेंगे।

भारत में भी चुनावी मौसम में फ्री की पॉलिटिक्स के कई उदाहरण मिलते है, यदि इस फ्री की पॉलिटिक्स का दुष्परिणाम देखना हो तो नजदीकी देश श्रीलंका के हाल देख कर सचेत हो जाएं। विगत दिनों देश में हुए कई चुनावो में फ्री सुविधाएं देने की होड़ ने सरकारों का नुकसान ही किया है, चाहे केजरीवाल की फ्री बिजली देने का वादा हो, या कमलनाथ सरकार द्वारा मध्यप्रदेश में कर्ज माफी। क्योंकि बैंक द्वारा दिया गया कर्ज तो ऐसी राशि होती है जिसे आपको चुकाना ही है, फिर चाहे सरकार को कर्ज लेकर ही उस राशि को क्यों ना चुकाना पड़े। किसानों को सही कृषि के लिए प्रशिक्षण, संसाधनों में छूट, सही बीज, फसलों के सही दाम मिल जाएं इतना ही बहुत है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब आपको कोई वस्तु बिना किसी लागत के मिलती है तो उसका मूल्य अपने आप ही कम हो जाता है। फ्री में मिली वस्तु ना महत्व रखती है ना ही जनता अगली बार उसे महत्वपूर्ण समझती है। क्योंकि एक बार फ्री उपयोग की आदत हो जाये तो जन सामान्य उसे सहज रूप में ले लेता है, तब अगली बार राजनीतिक पार्टी को इससे अधिक लालच देकर ही वोट मांगने पड़ेंगे, और इस लालच का आंत श्रीलंका जैसे हालात ही है। जनता के टेक्स से अर्जित धन को वोटबैंक के लालच में लुटा देना किसी भी तरीके से सही नही। भारत में उद्योगपति तो इस संबन्ध में केंद्र सरकार को सूचित भी कर चुके हैं यदि चुनावों में फ्री में सुविधाएं देने की और टैक्स कम करने की इसी तरह के वादे किए गए तो आने वाले समय में तेलंगाना आंध्र प्रदेश पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में भी श्रीलंका जैसे ही हालात होंगे। भारत इतना बढ़ा देश है, करोड़ो की आबादी है, अनाज, खाद्य, तेल, ईंधन, संसाधनों की इतनी खपत और आवश्यकता है कि जिसका जवाब नही। इतने बड़े देश को संभालना, आर्थिक नियंत्रित करना भी बहुत बड़ी बात है। सबसे महत्वपूर्ण देश के किसान है जिन्होंने देश के उत्पादन को संभाले रखा है, आज भारत श्री लंका को खाद्यान सहयोग दे रहा है। यह देश के उन्नत किसान के मेहनत से ही संभव हुआ है।

अब जिम्मेदारी आपकी और हमारी है, इस फ्री की पॉलिटिक्स से बाहर आकर अपनी जिम्मेदारी व सरकार को दिए गए टेक्स की उपयोगिता को समझें। वरना कहीं ऐसा ना हो कि बिजली पानी फ्री लेने के चक्कर मे आप भारत को ऐसे हाथों में सौंप दें जो देश की स्वतंत्रता और गणतंत्र के लिए ही खतरा बन जाए।

— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश