कविता

गर मंजिल पाना है

जग में गर मंजिल पाना है तो
पथ पर चलते ही जाना होगा
राहों में ठोकर आये तो भी
ठोकर से ना घबराना होगा

जब चल पड़ती है जल की धारा
चट्टानों से भी कभी डरती है क्या
जल प्रवाह कभी हार ना मानती
कुछ फर्क पड़ती है उसे क्या

फिर बढ़ जाती है धारा की सफर
अपनी मंजिल की कहानी पर
अपने संग औरों को लेकर
बढ़ जाती है मंजिल की रवानी पर

हमको भी हिम्मत और धैर्य लेकर
मंजिल की ओर बढ़ जाना है
कितना भी ठोकर आये जग में
पथ पर आगे ही चलना है

जो चलता है वो ही पाता है
मंजिल उनका स्वागत करता है
अय राह के राही तुम भी चलो
मंजिल तेरी आगवानी करता है

— उदय कशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088