मुक्तक/दोहा

कैसी जीवन रीत

अपना मतलब परम है,बाकी सब बेकार,
जो दूजों की सोचता ,हरदम खाता मार।

बेइमानी के युग में,करो न सच की बात,
जो सच बोला आपने ,पाओगे आघात।

हर दिन देती जिंदगी,खुशियों के उपहार ,
लेकिन उसके लिए भी ,कुछ शर्तें हैं यार।

कसमे खाते जो रहे ,सदा प्रेम के मीत ,
उनसे ही धोखा मिला ,कैसी जीवन रीत।

धोखा देने में सदा ,जो होता हुशियार .
उसकी बोली में सदा ,होता मीठा प्यार।
— महेंद्र कुमार वर्मा

नोट –कृपया तस्वीर प्रकाशित नहीं करें ,सादर।

महेंद्र कुमार वर्मा

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