लघुकथा

जीवटता

आजकल रश्मि मायूस-सी रहती थी. फिर से बेटे-बहू के पास जो जाना था. व्यक्त न कर पाने पर भी पिछली बार का दर्द उसे अभी तक साल रहा था.
अब फिर उसे लग रहा था, जैसे वह जिंदगी को धकेल रही है. दिन तो किसी तरह कट जाता था, पर रात की नींद का क्या! भगवान जी से अपने पास बुलाने की प्रार्थना करने के सिवा उसके पास चारा ही क्या था!
कभी-कभी उसे लगता था कि भगवान जी उसके पास आ भी गए तो क्या वह उनका तेज सह सकेगी! तेज न सह सकने के कारण सुबह के हल्के सुनहरी सूरज को प्रणाम भी वह पेड़ की छनती रोशनी में से करती थी.
एक दिन सचमुच उसके पास भगवान जी आ ही गए!
“सादर प्रणाम भगवान जी.”
“आयुष्मान भव पुत्री.”
“आयुष्मान भव पुत्री का आशीर्वाद दिया है आपने! मैंने तो आपको अपने पास बुलाने का निवेदन किया था!”
“मैं तो हर समय तुम्हारे साथ हूं. तुम्हारे परिवार वाले भी तुम्हें कितना चाहते हैं, तुम समझ नहीं पा रही हो!”
“ऐसा होता तो फिर आपसे ऐसी प्रार्थना ही क्यों करती!”
“तुमने तो वही अलबेली वाली बात कर दी न! एक दांत टूट जाए, तो उसका दुःख मनाने लगती हो, 31 दांत सही-सलामत हैं, उनकी खुशी से किनारा कर लेती हो!” रश्मि को बात तो सही लग रही थी, चुपचाप सुनती रही.
“उस दिन जब 12 सीढ़ियों से हीरो-हीरोइनों की तरह लुढ़क गई थीं, तो तुम्हारे बहू-बेटे ने कैसे भागकर तुम्हें उठाया था! बड़ा पोता भागकर फर्स्ट एड बॉक्स ले आया था, छोटा पोता अपना खिलौने वाला डॉक्टरी स्टेथसकोप लेकर तुम्हारा बुखार नाप रहा था, इतना दर्द होते हुए भी उसकी इस अदा पर तुम्हें प्यार आ रहा था! बहू आधे घंटे तक तुम्हारी खरोंचों पर बैंड एड लगाती रही, बेटा गर्म दूध-हल्दी ले आया. कोरोना और लॉकडाउन के कारण बहुत समय बाद रात के 12 बजे घूमकर आने की मस्ती में इतनी बुरी तरह से गिरने पर भी तुम्हें कोई भारी चोट नहीं आई, मैं जो तुम्हारे साथ था!” सारा दृश्य हू-ब-हू उसके सामने आ गया था, रश्मि क्या कहती!
“किसी परिस्थिति विशेष के चलते तनावग्रस्त होने के कारण उनसे कभी कोई अवमानना हो भी गई हो, तो तुम याद करो, क्या तुमसे कभी ऐसा नहीं हुआ!” रश्मि की आंखों के आगे सन्नाटा छा गया.
“आंखें बंद करने से मुसीबत नहीं टलती
और
मुसीबत आए बिना आंखें नहीं खुलतीं!” उसने कहीं पढ़ा था.
आंखें खुलने पर उसने देखा तो भगवान जी कहीं नजर ही नहीं आए! मोबाइल में समय देखा तो सुबह के छः बज रहे थे.
“ओहो, तो यह स्वप्न था! पर सचमुच भगवान जी मेरी आंखें खोल गए!” सुबह उठने की प्रार्थना करते हुए रश्मि का मन असीम शांति का अनुभव कर रहा था.
कोई अदृश्य शक्ति जिंदगी को जीवटता से जीना जो सिखा गई थी!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244