कविता

विश्व शांति

 

आइए! विश्व शांति की बात करते हैं
अपने ही घर से
सिर फुटौव्वल की शुरुआत करते हैं।
हम इतने तो नासमझ नहीं लगते
बिना अशांति के शान्ति की क्यों बात करें
पहले अशांति फैलाते हैं
फिर बड़े सूरमा बनते
शांति दूत बन शांति का पाठ पढ़ाते हैं।
जाति धर्म मजहब का झंडा बुलंद करते हैं
भाई भाई को आपस में लड़ाने का
सफल षड्यंत्र रचते हैं,
बिना बात के दंगा फसाद करते, कराते
शान्ति क्यों है शहर में साहब
इस शान्ति में नफ़रत की चिंगारी उछालते हैं।
फिर सफेद कुर्ता पायजामा पहन
भाईचारे का ढोंग करते
पैदल शान्ति मार्च निकालते
दिखावे के लिए शान्ति के रहनुमा बनते हैं।
कुछ ऐसा ही तो रहा विश्व में
ताज़ा उदाहरण दिख रहा रुस यूक्रेन युद्ध में,
सिर्फ कोरी गप्पबाजी से काम चलाते
चाहते तो हम हैं युद्ध में चलता रहे
और हम शान्ति के पैरोकार दिखते रहें
अपने स्वार्थ का उल्लू सीधा करते रहें।
जिन्होंने इस युद्ध की बुनियाद रखी
युद्ध चलता रहे,
वे ही पीछे से हवा दे रहे हैं,
धमकियों संग युद्ध रोककर
बातचीत की सलाह लें ही दे रहे हैं,।
बड़ी बेशर्मी से विश्व शांति की बातें कर रहे
लोग हों या देश, सब आपस में लड़ते रहें।
सब अपने अपने स्वार्थ वश
विश्व शांति की बात करते रहे,
मगर शांति कायम न होने पाये
दिन रात सब ऐसी जुगत करते रहें
विश्व शांति का ढोल बेहयाई से
हम आप बस पीटते रहें,
अशांति फैलाते रहें,
विश्व शांति का संदेश भी
समूचे विश्व को हम देते रहें
विश्व शांति का झंडा बुलंद करते रहें।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921