सामाजिक

इंसानियत कहां हैं?

25 मई की खबर हैं ये जब इंसानियत की तौहीन कर  हैवानियत ने नंगा नाच दिखाया था पुणे के सासवड थाना के क्षेत्र में।एक होटल के कर्मचारी ने तीन कचरा उठानेवालों पर उबलता पानी फैंका,शायद उन्हें वहां से भगाने के लिए।क्या इंसानियत मर चुकी हैं? तीनों को अस्पताल में भर्ती कराया गया जिसमें दो ने दम तोड दिया हैं।ये वाकया पुलिस स्टेशन से ज्यादा दूर नहीं घटा लेकिन जब उनमें से एक की मृत्यु होने पर ही प्रशासन ने मामला दर्ज किया।दो लोग तो मर ही चुके हैं और तीसरा भी सीरियस हैं।
 वाकया ऐसा था कि ये तीन लोग उस होटल के पास बैठा करते थे जिससे उस होटल के मालिक को एतराज था तो उनको वहां से भगाने के लिए उन्हें पिटा गया और एक कर्मचारी ने उन पर खौलते पानी की बाल्टी डाल दी।कर्मचारी को तो पुलिस ने पकड़ लिया हैं और होटल का मालिक फरार हैं।फरार होटल मालिक को राजकीय संरक्षण प्राप्त होगा ही तो देखें कबतक पकड़ा जाता है?
     लेकिन एक बात तो सामने आ गई हैं कि गरीबों की जान की कोई कीमत नहीं होती।वैसे गुजरात के अहमदाबाद में कुछ ऐसा देखा कि हैरान रह गई।कुछ मजदूर फुटपाथ पर टाइल्स लगा रहे थे वहीं कुछ दूरी पर किसी ने झोपड़ीनुमा प्लास्टिक का कपड़ा लगा टैंट सा बनाकर एक परिवार रह रहा था तो उन मजदूरों ने वह जगह छोड़ आगे की और काम शुरू कर दिया ।मेरे घर के पास ही ये देखा था तो मैंने पूछ ही लिया तो उन में से एक ने जवाब दिया,”ये तो हमारे वालें ही हैं न!”एकदम से ये सुन मुझे प्रसन्नता हुई कि कोई तो हैं जिन में एकता की भावना हैं,आपस में जुड़े हुए हैं।अगर कोई अमीर होता तो दूसरे अमीर को अपना मानने से ज्यादा अपना प्रतिस्पर्धी मानता लेकिन ये गरीब ही था जो दूसरे गरीब को अपना मान रहा था।क्या ये दुःख की ताकत ही थी जो इन्हे जोड़ रही थी।वैसे तो वे होटल कर्मचारी जिन्होंने खौलता पानी डाला वे भी धन कुबेर तो नहीं होंगे।
 अब देखें अमीर लोग कैसे होते हैं।अपने बेटे के लिए बहु के चयन हेतु कुछ लड़कियों से मुलाकातें हो रही थी।उनमें से एक किसी डायरेक्टर की बेटी, जिसके साथ बंदूकधारी सुरक्षा रहती थी वह हम से मिलने हमारे घर आई।आम चर्चा के दौरान बेकरी के बाहर सोएं लोगो के कुचलकर मारें जाने की बात हुई तो उसके जवाब को सुन मैं तो हैरान ही हो गई। कह रही थी,” उनको वहां फुटपाथ पर सोना ही नहीं चाहियें था।वह चलने की जगह पर सो रहे थे तो ये होना ही था।”  मैने भी सिवमचा चलो चलने की जगा थी जहां वे लोग सो रहे थे लेकिन वह रास्ता भी नहीं था जहां कार चलाई गई थी।
  अब उसे समझाने की बारी थी तो मैं ने  भी कहा कि वे लोग हमारे समाज के सिक्के का दूसरा हिस्सा हैं अगर अमीर लोग एक साइड हैं तो वे उसी सिक्के की दूसरी साइड हैं।कैसे एक साइड वाला सिक्का या समाज हो सकता हैं? ये समझना भी जरूरी हैं।उनको कोई मदद करें या न करें लेकिन उन से नफरत करना तो गुनाह ही कहा जायेगा। सिक्के की दूसरी साइड को अपनाना बहुत जरूरी हैं।ये वंचित लोग हैं शायद किस्मत या फिर उनसे कोई जातिवाद,राजनैतिक या सामाजिक अन्याय हो रहा होगा कि उनके ये बाद से भी बदतर हालत हैं।आज हम सभी को एक प्रण लेना हैं कि, अपने सिक्के को सबूत रखने के लिए उनकी समस्याओं को समझें न कि उनसे नफरत करें।
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।