लघुकथा

पत्र

मेरे प्यारे भैया जी
सादर नमन
आशा करती हूं कि आप सपरिवार स्वस्थ प्रसन्न होंगे। यहां भी सब ठीक है। सभी आपको याद करते हैं।
न चाहते हुए भी मुझे लिखना ही पड़ रहा है या यूँ कहिए कि अब विवश हो गई हूँ। अभी कल ही ये भी कह रहे थे कि आजकल भाई साहब कुछ कटे कटे से लगते हैं।यह भी पूँछ रहे कि मैंने तो ऐसा कुछ नहीं बोल दिया, जिससे वे परेशान या नाराज हों।
अभी दो साल पहले ही तो मैं जब आपको पहली बार राखी बाँधने गई थी,तब आप कितना खुश थे। मम्मी पापा से मिलकर ऐसा लगा ही नहीं कि मायके में नहीं हूँ।एक सप्ताह ऐसे बीता था, जैसे घंटों में बीत गया हो। तब आपने बहुत सी ऐसी बातें शेयर की थीं, जैसे आपको मेरी ही प्रतीक्षा थी। आज जब काफी दिनों बाद आपका बेमन से लिखा प्रतीत होता पत्र मिलता है, तो सोचती हूं कि मेरा भाई कहाँ खो गया। क्योंकि अब आपके पत्रों में ऐसा कुछ होता ही नहीं, जिससे ये लगे कि आप खुश हैं। अपनी शादी तक में नहीं बुलाना तो दूर बताया तक नहीं। मम्मी पापा को भी पत्र लिखा, कोई जवाब ही नहीं दिया, शायद आपने मना कर दिया होगा। ऐसा लगता है कि कुछ ऐसा बड़ा हुआ है और आप सब छिपाने की कोशिश कर रहे हैं।
मुझे नहीं पता भैया ऐसा क्या हुआ और आप हमसे छिपाकर क्या हासिल कर लें रहे हैं। निशा का तो कोई मामला नहीं है न भैया, शायद ऐसा ही हो।या अब आपके मन में अपने पराए का भेद महसूस होने लगा या आपको अपनी बहन को तो छोड़िए अपने ही खून पर विश्वास नहीं रह गया। जो भी है, लेकिन दु:ख तो हो ही रहा है कि जब हमें आप बहुत करीब से नहीं जानते थे, तब तो आप हर छोटी बड़ी बात एक मुलाकात में ही कह गए थे, जिसे शायद ही हर किसी को आप आसानी से बता सकते हो, फिर भी आपने भरोसा किया अपनी छोटी बहन पर।जिसकी जिंदगी आपके दिए खून ही से चल रही है।
पत्रों से शुरू हुए हमारे संबंध कब प्रगाढ़ हो गए, पता ही नहीं चला, मगर मम्मी का वो पत्र जिसमें उन्होंने मेरे स्वास्थ्य की जानकारी ली थी, उसने बड़ी भूमिका निभाई थी। पापा(ससुर जी) इसलिए खुश थे कि आपके रुप में मुझे मेरा भाई मिल गया। पापा आप सबसे मिलना भी चाहते थे।पर ईश्वर को मंजूर नहीं था। खैर जो भी है , मैं आपको बाध्य नहीं कर सकती , क्योंकि मैं आपकी सगी बहन नहीं हूँ न। इसलिए मुझे कोई अधिकार भी तो नहीं है। लेकिन मैं एक बार, हो सकता है, शायद आखिरी बार आपके पत्र की प्रतीक्षा के बाद इन्हें आपके पास भेजूँगी, शायद हम दोनों के मन में चल रहे भावों की वास्तविक स्थिति पता चल जाय। मुझे इतना तो पता है कि आप इन्हें भी कुछ नहीं बताना नहीं चाहेंगे, मगर इन पर इतना भरोसा तो है कि सच बोलने के लिए ये कैसे भी आपको विवश कर ही देंगे। मैं भी आना चाहती थी, मगर ये नहीं चाहते कि मैं आपको किसी दुविधा में डालूँ अथवा कोई ऐसी जिद कर बैठूं, जो आपको मेरी धृष्टता का बोध कराए और आप रिश्तों की मर्यादा का उल्लंघन करने के साथ अपराध बोध के लिए विवश हो जायें।
मैं इतना सब लिखते हुए किस पीड़ा का अनुभव कर रही हूँ, उसको शब्दों में व्यक्त नहीं करुंगी, आपने बहन कहा है तो खुद महसूस कर लीजिएगा। मैं जानती हूँ कि मेरा ये पत्र आपको निश्चित ही रुलाएगा, अच्छा भी है आप तो रोज ही अपनी बहन को रुलाते हो। तो अब आपकी भी यही सजा है।
बस! आखिरी बार यह आग्रह जरुर करती हूं कि पत्र के स्थान पर आप स्वयं आकर अपनी पराई बहन के सिर पर अपना हाथ भर रख दें, तो मुझे बहुत ख़ुशी मिलेगी। अपनी गल्तियों की माफी भी मैं तभी माँगूंगी जब आप सामने होंगे। आप क्या सोचते हैं, मुझे नहीं पता, लेकिन मैं जानती हूँ कि मुझे एक बड़े भाई के रुप में आपका संरक्षण प्राप्त है।
आपको गुस्सा तो आएगा, मगर फिर भी आपको चरण स्पर्श निवेदित करती हूं, साथ ही माँ पापा और अपनी अनदेखी भाभी को भी।
स्नेह सहित आपकी कुशल कामनाओं के साथ
आपकी छोटी बहन

*सुधीर श्रीवास्तव

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