लघुकथा

लघुकथा – श्यामली

एक तो गर्मी दूसरे दिन भर की कठोर मेहनत से मजदूर अधिक थके-थके लग रहे थे । ठेकेदार उन्हें एक मिनट की भी फुरसत नहीं देता था । उन मजदूरों में एक अधेड़ उम्र की मजदूरन कुछ दिनों से काम पर आने लगी थी । पाँच बजते ही सभी काम से निवृत्त हो हाथ-पैर धोकर अपने घर की ओर रेंंगते रेंंगते जाते दिखाई देते, ये उनका रोज का काम था पर थकीं-मांदी श्यामली (मजदूरन) को पाँच बजते ही ना जाने स्फूर्ति कहाँ से आ जाती, वह जल्दी जल्दी हाथ पैर धोती और सबसे पहले वहाँ से चली जाया करती थी। ये उसका रोज का कार्य था । ठेकेदार की उस पर कई दिनों से नजर थी । आज उसने उसे जाते हुए टोका- श्यामली, तुम अन्य की तरह खूब मेहनत करती हो और थक भी जाती हो पर जैसे ही शाम के पाँच बजते हैं तुम्हारे पैरों में जाने पंख से लग जाते हैं और तुम सबसे पहले यहाँ से ओझल हो जाती हो, इसका कारण क्या है ?
ये सुनकर श्यामली थकी मुस्कान से मुस्कुराती हुई बोली- बाबूजी, ये काम खत्म हुआ तो क्या “मुझे तो घर जाकर फिर काम पर लगना है ” और देखते-देखते आज फिर वह सबकी नजरों से ओझल हो गई कल फिर सुबह आने के लिए ।

— व्यग्र पाण्डे

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201