लघुकथा

आत्ममुग्धा

नीलम अभी अभी अपनी ननद अभिलाषा के घर आई,आते ही अपनी तारीफों के पुल बांधने लगी। नीलम से जब भी कोई बात करो घुमा फिरा कर खुद पर ले आती है हमेशा खुद की तारीफ करती रहती है उसके मुंह से कभी भी किसी की तारीफ नहीं सुनी, वो चलता-फिरता कम्पलेन बाक्स है। नीलम के पति एक सरकारी अधिकारी है और उसके दो बच्चे हैं दोनों इंजिनियर हैं। उसे इस बात का बड़ा गुमान है हर किसी से कहती रहती है कि उसकी बदौलत ही उसके पति और बच्चे कामयाब है।एक दिन राहुल को कह रही थी ‘अगर रमेश की जिंदगी में मैं नहीं आती तो इनका कुछ बनना ही नहीं था मेरे ही कारण रमेश का प्रमोशन हुआ और मैंने अपने बच्चों को इतना काबिल बनाया।’ राहुल तो बस उसका मुंह ही देखता रह गया।
नीलम का रंग कुछ सांवला है मगर नैन-नक्श अच्छे हैं। उसे अपने लुक पर बड़ा घमंड है, सारा दिन आईने के सामने खुद को निहारना और सजना -संवरना दिनभर सोसायटी में घुमाना और गाशिप करना। घर के कामों उसका जी ही नहीं लगता। पति और बच्चे ज्यादातर बाहर ही खाना खाते क्योंकि घर में खाना बना ही नहीं होता था।दिन भर तितली बनी फिरती थी सोसायटी के मनचले आशिक उसके इर्दगिर्द घूमते रहते और उसकी तारीफें करते। उनकी तारीफें सुन-सुनकर वो खुद पर मुग्ध रहती ।दिनभर में कई बार अपनी प्रोफाइल चेंज करती शैल्फी खींचना तो मानो उसका शौक हो। अभिलाषा को आश्चर्य होता है कि कोई भी इतना खुद पसंद कैसे हो सकता है।
— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P