कविता

मुहब्बत ठुकराने लगे

अपने किस्से वफाओं
की सुनाने लगे
वो हमारी मोहब्बत
आजमाने लगे।
जताकर चाहतों के
समंदर में उतर गए
अब पार आने में कई
ज़माने लगे
कहते मुझसे ज्यादा
कौन तुमको चाहेगा
इब्तादा–ए मंजूरी में
सौदे कराने लगे।
छोटी सी दुनिया
बनाई और उजाड़ी भी,
अब वापस बुलाने में
कई फसाने लगे।
मिलन की खुशी और
खोने का डर दिखा
मोहब्बत को कंकड़
समझ ठुकराने लगे।
ऐसा होगा तो वैसा
होगा कई बातों से
दिलों पर तेज से
आरियां चलाने लगे
शक के दायरे को
बढ़ाते चले गए
मुकम्मल इश्क में
पैबंद लगाने लगे।
— प्रणाली श्रीवास्तव

प्रणाली श्रीवास्तव

युवा कवयित्री व गीतकार जनपद-सहडोल,मध्य प्रदेश