गीतिका/ग़ज़ल

एक ग़ज़ल

दर बदर सर झुकाना पड़ेगा,
नाम खुद का मिटाना पड़ेगा।

मन तो लगता नहीं है जहां में,
फिर भी दिल तो लगाना पड़ेगा।

वक्त अपना कभी दूसरों का,
सबसे मिलना – मिलाना पड़ेगा।

कैसे हासिल करें कोई मंजिल,
ख़तरे, जोख़िम उठाना पड़ेगा।

कुछ न उतर मिलेगा, किसी से,
पर भरोसा जताना पड़ेगा।

अपने अधिकार, जो भूल बैठे,
उनको फिर से जगाना पड़ेगा।

अपनी मजबूरियों को भुला के,
बस हमें मुस्कुराना पड़ेगा।

— नागेन्द्र नाथ गुप्ता

नागेन्द्र नाथ गुप्ता

ठाणे (मुंबई)