कथा साहित्यकहानी

परीक्षा

परीक्षा
मैं जल्दी लौट आऊंगी,तुम अपना खयाल रखना। कल तुम्हारी परीक्षा शुरू हो रही है। मम्मी मैंने पूरी तैयारी कर ली है। मुझें अपने तरु पर पूरा भरोसा है। इस साल भी तुम विश्वविद्यालय की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करोगे।मम्मी,ये तो नहीं पता पर, आपका आशीर्वाद मेरे साथ रहा तो इस बार भी मैं अपनी परीक्षा परिणाम से आपका मान-सम्मान बढाऊंगा,मुझें पूरा भरोसा है अपने तरु पर।
रीमा, तुमने बैग, मोबाइल सब ले लिया है।हाँ,मम्मी सब कुछ रख लिया है। आप जल्दी चलिए, गाड़ी आने वाली हैं। अच्छा बेटा अपना ख्याल रखना। हम जल्दी ही लौट आएगे।तरु,घर से बाहर मत जाना, खाना रख दिया है,समय पर खा लेना।मम्मी,
चलो।हाँ,मम्मी चल पड़ो,वरना ये भी शुरू हो जाएगी।तरु बड़ी बहन भी तो माँ के समान होती है।
समझें पागल कहीं के——।तीनों खिल-खिलाकर हँस पड़े,मम्मी जल्दी करो। इसको समझाने में, पूरा दिन निकल जाएगा। जल्दी करो, ऑटो वाला गेट के बाहर खड़ा है। चलो ओके दीदी, बाय-बाय।ध्यान से जाना।
परिवार के तीनों सदस्य एक दूसरे की चिंता में लगे रहते थे।जब तक ऑटो आंखो के सामने से ओझल नहीं हो गया।चारों तरफ सन्नाटा पसर रहा था। वह किताब लेकर खिड़की के पास,आखिरी परीक्षा की तैयारी में जुट गया।उसे सिर्फ दो शौक थे, पढ़ने का और क्रिकेट खेलने का।वह खेल में बेहतरीन प्रदर्शन करता था।पढ़ाई-लिखाई में तो उसका कोई मुकाबला नहीं था।कक्षा में प्रथम आना उसकी आदत सी बन गई थी। उसके पापा का सपना था कि वह बहुत बड़ा आदमी बने।वह छोटी सी चाय की दुकान चलाते थे। जीवन भर की कमाई के नाम पर अपने दोनों बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाना ही उनका सपना था।
लोग उसे अक्सर समझाते थे,भविष्य के लिए कुछ धन जमा कर लो।वह हँस कर टाल जाता था। भाई, मैंने अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दिए हैं।पर धन तो जरूरी हैं।यह सब बातें तो ठीक है,पर वह किसी की बात नहीं सुनते थे।
दुकान पर कमाई ही कितनी थी?बस वह अपने बच्चों की शिक्षा ही पूरी कर पा रहा था। एक मकान बनाने की हिम्मत नहीं थी।उसे अपने बच्चों पर भरोसा था। पापा को भी संसार से गए,दो वर्ष हो चुके थे। दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो चुकी थी। अब मम्मी ही दुकान चलाती थी। काम ठीक चल रहा था, गुजारा हो रहा था।
रीमा,अपनी डिग्री पूरी कर चुकी थीं।वह नौकरी की तलाश में थी।तरु का आखिरी साल था। दोनों जल्दी ही अपने पैरों पर खड़े होने वाले थे। आज मम्मी दीदी के लिए लड़का देखने जा रही थी।तरु का मन बहुत खुश था। वह अपनी दीदी से बहुत प्यार केरता था।
अंधेरा बढ़ता जा रहा था, धीरे-धीरे शाम ढलती जा रही थी।सर्दियों की शाम जल्दी से अँधेरे का दामन थाम लेती हैं।तरु कई बार सड़क के चक्कर लगा आया था। मम्मी का मोबाइल बंद आ रहा था। पता नहीं, इतनी देर क्यों हो रही है?वह बार-बार सड़क की ओर देख रहा था। उसका मन बैठा जा रहा था।
घड़ी रात के नौ बजा रही थी। मम्मी को फोन करना नहीं आता था।दीदी,को क्या हो गया था?वह तो एक बार फोन करके बता देती रास्ते में हैं, अभी पहुंच जाएंगे।वह घर के अंदर आया और भगवान के सामने सिर झुका कर खड़ा हो गया, भगवान पता नहीं मम्मी को इतनी देर क्यों लग रही है? प्रार्थना में उसका मन नहीं लग रहा था। उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
रात के ग्यारह बज चुके थे।गेट पर हो रही खटखटाहट सुनकर वह गेट की ओर दौड़ा।पुलिस के दो सिपाहियों ने उसे एक फोटो दिखाई और पहचानने को कहा,यह उसकी मम्मी की फोटो थीं।क्या हुआ मेरी मम्मी को, वह चीख उठा।उसकी चीख-पुकार सुनकर पड़ोसी भी उठ गए?परिवार में कोई बड़ा नहीं था।पड़ोसी उसके साथ चल पड़े। उसे किसी अनहोनी घटना की शंका हो रही थी। पड़ोसी भी उसके साथ-साथ हस्पताल की सीढ़ियां चढ़ रहे थे।
रीमा खून से लथपथ पड़ी,दर्द से कराह रहीं थीं।वह तरु-तरु पुकार रही थी। उसने दीदी का हाथ थाम लिया। भाई का स्पर्श पाकर वह शान्त हो गई।वह मम्मी-मम्मी चिल्लाई। डॉक्टर ने,उसे बता दिया। गाड़ी की चपेट में आने से मम्मी का सिर फट गया और वह नहीं बच सकी। वह चिल्लाता रहा,उसके आँसू थमने का नाम नहीं ले रहें थे। हिम्मत से काम लो बेटा,जो होना था वह हो चुका है। यही भगवान की मर्जी थीं।
मम्मी,कहाँ है? उनकी लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई है। तुम्हारी दीदी को भी गहरा सदमा लगा है। तुम्हें उसे भी संभालना होगा।अब सारी जिम्मेदारी तुम्हारें कंधों पर है, पड़ोसी अंकल उसे बार-बार हौसला दे रहे थे। उसकी हालत का अंदाजा उन्हें था। धीरे-धीरे सारा पड़ोस इक्क्ठा हो गया। दीदी को होश नहीं आ रहा था ।अगले दिन अंतिम यात्रा की तैयारी हो रही थी। सभी की आँखे नम थीं।दीदी,मम्मी के अंतिम दर्शन नहीं कर सकी।उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा रहा था। उसे यकीन नहीं हो रहा था,कि इतनी जल्दी उसका हँसता- खेलता परिवार उजड़ जाएगा। उसके ऑंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। उसने मम्मी को आखिरी विदाई दे दी। सारा पड़ोस उसके साथ खड़ा था। सभी उसको  सहायता का आश्वासन दे रहे थे।उसे पता था, ये लोग सिर्फ आश्वासन ही दे सकते हैं।जब पापा संसार से गए थे।तब भी यहीं हुआ था। सप्ताह बीत जाने के बाद भी, दीदी को होश नहीं आया था। जब होश आया, तब तक सब खत्म हो चुका था।
पर उसके दिमाग पर इस हादसे का बहुत असर पड़ा था। सब कुछ खत्म हो गया था, वह अपनी याददाश्त खो चुकी थी। भगवान वह चिल्ला उठा। पढ़ाई बंद हो चुकी थी। उनकी यादों के सहारे वह कब तक घर में रह सकता था?दीदी की जिम्मेदारी उसके सिर पर थी।
वह दीदी को अकेली नहीं छोड़ सकता था। उसने मन ही मन निर्णय कर लिया था।वह अपनी चाय की दुकान पर मेहनत करेगा। दीदी को अपने साथ रखेगा। बहुत मुश्किल समय था। उसका कोई साथ देने वाला नहीं था। दीदी की दवाइयों का खर्च,उसकी देखभाल की जिम्मेदारी, उसने इन हालातों से लड़ने की ठान ली थीं। वह सुबह दीदी को तैयार करता, एक बच्चे की तरह,वह अपनी दीदी के लिए माँ-बाप दोनों ही था। उसे साइकिल की पिछली सीट पर बैठाकर दुकान पर ले जाता। वह दुकान पर ग्राहकों को देखती रहती, पर पहचानती कुछ नहीं थी।
तरू दिन भर चाय के काम में लगा रहता, दुकान पर काम बहुत बढ़ने लगा था। उसकी चिंता भी बढ़ रही थी।जवान बहन को वह किसी के सहारे नहीं छोड़ सकता था।वह  भगवान से दिन-रात प्रार्थना करता,हे प्रभु मेरी दीदी को ठीक कर दो। पर अभी उसकी परीक्षा कहाँ खत्म होने वाली थी? दुकान पर बैठी बहन को कोई ना कोई छोड़ देता था।वह किस-किस से झगड़ा मोल लेता। जिंदगी के दो साल इसी तरह बीत गए। वह लगातार कमजोर होता जा रहा था। उसकी पीड़ा समझने वाला कोई नहीं था।
पर उसे पता था,मजबूरी पर्वत से भारी।वह अपने काम में लगा रहता।उसे अपनी कोई चिन्ता नहीं थीं।अपनी दीदी को, उसने पहले स्थान पर रखा था। उसके बाद काम और फिर खुद को रखा था।वक्त पंख लगाकर उड़ता जा रहा था।पाँच साल कब गुजर गए,पता ही नहीं चला? दीदी की हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था। उसका स्वस्थ भी बिगड़ता जा रहा था। वह मजबूर था,ना  अपना ख्याल रख पा रहा था, ना अपनी प्यारी दीदी का।
सुबह से बहुत तेज बारिश हो रही थी। बिजली कड़क रही थी। दीदी डर कर उसका हाथ पकड़ लेती थी। वह दीदी को सहला रहा था। दीदी थोड़ी देर में बिजली बंद हो जाएगी, डरो मत। वह आसमान की तरफ देख रहा था। पर बारिश रुकने का नाम नहीं ले रहीं थीं। इस भयंकर बारिश में, एक लड़की तूफान की तरह दौड़ती चली आ रही थी।उसके पैर में चोट लगी थीं। उसका चेहरा दर्द से तड़प रहा था। क्या मैं यहां थोड़ी देर रुक सकती हूँ?वह दुकान पर बैठ गई।वह गुमसुम थीं।उसने उसे चाय पकड़ा दी।वह चुपचाप चाय पीने लगी।वह लगातार तरु को देख रही थी, जो अपनी दीदी को चाय पिला  रहा था।
वह पूछ बैठी, यह कौन है?क्या यह खुद चाय नहीं पी सकती?यह मेरी दीदी हैं, यह  मानसिक रूप से,कहकर वह चुप हो गया।मुझें माफ करना, मुझे पता नहीं था।आपके पैर में चोट कैसे लगी? जी,क्या बताऊँ, आपको तो पता है, एक अकेली लड़की का झाड़-झाड़ बैरी?अकेली देखकर कुछ लड़के मेरा पीछा कर रहे थे।भागते-भागते सड़क पर गिर पड़ी,पैर मुड़ गया।आप अपने घर पर इसकी शिकायत क्यों नहीं करती? शिकायत किससे करूं? माँ-बाप तो बचपन में ही चल बसे थे।चाचा-चाची हैं,पर उन्हें मैं फूटी आँख नहीं सुहाती।
उनके लिए तो मैं बोझ से अधिक कुछ नहीं हूँ। किसी से शादी कर लो। आप भी कमाल करते हो।शादी क्या ऐसे ही हो जाती है? उसके लिए लड़के वालों का मुँह भरना पड़ता है।मेरे पास तो एक टूटी-फूटी कौड़ी भी नहीं है। चाचा-चाची मुझ पर रुपए ख़र्चने को तैयार नहीं है। घर का सारा काम करती हूँ,दिनभर फैक्टरी में काम करती हूँ।जो कमाती हूँ, सारा पैसा चाचा-चाची को देती हूँ। तब जाकर दो समय खाना मिलता है। कभी-कभी तो मन करता है, घर छोड़कर कहीं भाग जाऊं? पर अकेली लड़की कहाँ तक जा सकती है?भूखें-भेड़िये उसे नोच-नोंचकर खा जाएंगे,लाश का भी पता नहीं लगने देंगें।जो लड़के तुम्हें परेशान करते हैं,उनकी शिकायत अपने चाचा से कर दो।किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।अगर,तुम घर छोड़ कर चली जाओगी तो वे तुम्हें —-। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। जब भी मुझें देर हो जाती है,तो यहीं कहते हैं, धक्के खा कर आई हैं। इसके लक्षण ठीक नहीं लग रहें। मैं तो मर भी जाऊं,किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। वो तो सोचेंगे जान छूटी, मर गई। उस लड़की की बात सुनकर तरु को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था कि कोई अपने परिवार के साथ इतना संगदिल कैसे हो सकता है?
आज वह जिंदगी का नया पाठ सीख रहा था। क्या तुम्हारे घर में कोई नहीं है, जो तुम्हारी दीदी की देखभाल कर सकें? हम दोनों अकेले हैं। मम्मी-पापा दोनों मर चुके हैं।तुम शादी कर लो, किसी ऐसी लड़की से जो तुम्हारी दीदी को संभाल सके और तुम्हें भी सहारा दे सके। मुझसे कौन शादी करेगा, ना घर है, ना ही रोजगार, किराए पर रहता हूँ?
कोई लड़की मेरी दीदी की देखभाल क्यों करेगी, क्यों नहीं करेगी? मैं पढ़ी-लिखी नहीं हूँ,अनपढ़ हूँ।मैं तुम्हारी दीदी की देखभाल कर सकती हूँ।मुझें एक सहारा चाहिए।तरु,को आशा की किरण दिखाई दे रही थी। पर उसका मन उसका साथ नहीं दे रहा था। कहीं कोई गलत निर्णय ना हो जाए। सलाह करता तो किसके साथ? तरु ने उसका नाम पूछा?बरखा—-।
क्या तुम कुछ दिनों के लिए हमारे साथ रह सकती हो, एक दोस्त बनकर, क्यों नहीं? ठीक रहेगा, मैं तुम्हारे काम में मदद कर दिया करूंगी।वह तरु के साथ उसके घर रहने लगी। वक्त उड़ रहा था। एक वर्ष बीत गया। बरखा, दीदी का पूरा ध्यान रख रही थी।  दुकान जोरों से चल रही थी। दीदी की हालत में भी सुधार हो रहा था।उसकी याददाश्त लौट आई।
अब दीदी को किसी सहारे की जरूरत नहीं थी। दीदी ने बरखा और तरु की  शादी करवा दी।वह अपनी नौकरी के प्रयास में जुट गई। जल्दी से उसकी मेहनत रंग लाई।वह सरकारी नौकरी लग गई। बरखा ने तरु को समझाया हमें दीदी की शादी के बारे में विचार करना चाहिए। पर दीदी कहाँ मानने वाली थी?
उसने तरु से कहा,तुम्हें दोबारा से पढ़ाई शुरू करनी होगी। मैं घर का खर्च संभाल सकती हूँ। दो वर्ष और मेरे लिए। मेहनत करो फिर तुम जैसा चाहोगे, मैं कर लूंगी।तरु को मौके की तलाश थीं, प्रतिभा तो उसमें कूट-कूट कर भरी थी। जल्दी ही उसने भी एक सरकारी नौकरी हासिल कर ली। उसने दीदी के हाथ पीले कर दिए। उसने बरखा को भी पढ़ने के लिए प्रेरित किया। उसका पूरा सहयोग किया। बरखा भी हर परीक्षा पास करती चली गई।
आज तरु का मन बहुत बेचैन था।बरखा का सिविल सर्विस का नतीजा आने वाला था। तरु और दीदी पहले से ही सिविल सेवा में कार्यारत थे।बरखा,भी पास हो गई थीं।बरखा, तुम  मेरे जीवन में बारिश की बूंद की तरह हो।बस करो तरु,मैं जीवन की हर परीक्षा में तुम्हारें साथ हूँ।

राकेश कुमार तगाला

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