कविता

कायाकल्प

लाल जोड़े में
सजी धजी
लाल चूड़ा हाथों में
था खनकता
चेहरे पे खुशी की
लाली लिए
आयी थी बन दुल्हन
सजाया घर संसार
बच्चे हुए उनको कर बड़ा
किया पैरों पे खड़ा
फिर रचाये सबके ब्याह
बड़े ही चाव से
दो लड़कियां दो बेटों
दो जवाई दो बहुएं
इस तरह हुआ विस्तार
मेरे परिवार का
फिर सबके हुए बच्चे
बनी मैं नानी और दादी
सब कुछ कितना अच्छा
चल रहा था
जब बीमारियों ने आ घेरा
धीरे धीरे यूँ रोज़ जुड़ती गई
एक नई बीमारी और गिरने लगी सेहत
जिन होठों पर रहती थी सदा हँसी
छा गयी मायूसी
जिस दिल में होती थी खुशी
वहाँ रहने लगा दर्द
दिल क्या दिमाग क्या लिवर
क्या सब छोड़ रहे थे साथ
शरीर सुकड़ रहा था
हड्डियों भी नहीं रही
बस मास ही मास
न बाल रहे न चेहरा
इस तरह कायाकल्प
हो गया था मेरा देखते ही देखते
बहुत तड़पी बहुत कराही
डॉक्टरों ने भी दे दिया जवाब
बस कुछ पल ही रहूँगी और
पर फिर भी चार महीने लिखे थे और दर्द के
जब सबने छोड़ दी आस बच गयी मैं
और अब जब किसी को नहीं थी
आस मेरे जाने की
ली आखिरी सांस मैंने
और हुई विदा सुहागन
छोड़ रिश्ते सारे पीछे
छोड़ सारी यादें, बातें,
मुस्कानें अपनी
बस आयी थी डोली में
विदा हुई अर्थी पे ।
— मीनाक्षी सुकुमारन

मीनाक्षी सुकुमारन

नाम : श्रीमती मीनाक्षी सुकुमारन जन्मतिथि : 18 सितंबर पता : डी 214 रेल नगर प्लाट न . 1 सेक्टर 50 नॉएडा ( यू.पी) शिक्षा : एम ए ( अंग्रेज़ी) & एम ए (हिन्दी) मेरे बारे में : मुझे कविता लिखना व् पुराने गीत ,ग़ज़ल सुनना बेहद पसंद है | विभिन्न अख़बारों में व् विशेष रूप से राष्टीय सहारा ,sunday मेल में निरंतर लेख, साक्षात्कार आदि समय समय पर प्रकशित होते रहे हैं और आकाशवाणी (युववाणी ) पर भी सक्रिय रूप से अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहे हैं | हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रहों .....”अपने - अपने सपने , “अपना – अपना आसमान “ “अपनी –अपनी धरती “ व् “ निर्झरिका “ में कवितायेँ प्रकाशित | अखण्ड भारत पत्रिका : रानी लक्ष्मीबाई विशेषांक में भी कविता प्रकाशित| कनाडा से प्रकाशित इ मेल पत्रिका में भी कवितायेँ प्रकाशित | हाल ही में भाषा सहोदरी द्वारा "साँझा काव्य संग्रह" में भी कवितायेँ प्रकाशित |