भाषा-साहित्य

संस्कृत के पतन को रोकें

आखिर संस्कृत कब देवभूमि भारत की राज्य भाषा बनेगी ? संस्कृत के पतन का प्रमुख कारण इसका दैनिक उपयोग से उपेक्षित होना है। वेसे तो सरकार ने संस्कृत को 6 क्लास तक अनिवार्य बनाया, यह स्वागत योग्य है । परंतु यह जिम्मेदारी समाज की है कि वह संस्कृत को कितना महत्व देते हैं चलिये बात उपयोग की भी नहीं, परन्तु हम जहां भी जाते हैं कोई अधिकारीक फॉर्म भरते हैं, जहां हम भाषाओं के ज्ञान की बात बताते हैं क्या हम वहां पर संस्कृत को मौलिकता देते हैं । आम समाज संस्कृत पढकर उसका अर्थ आसानी से समझ सकता है, हमारे दैनिक जीवन के सभी मंत्र, श्लोक, प्रार्थनाएं संस्कृत में ही होती है, तो क्या हम संस्कृत के पतन को रोकने के लिए हमारी भाषा के ज्ञान में हिंदी और अंग्रेजी के साथ संस्कृत को भी जोड़ सकते हैं। क्यूंकी चाहे जनसंख्या आकलन, बैंक या विद्यालय, नौकरी से संबंधित कार्य हम जिस भाषा के ज्ञान की जानकारी फॉर्म में भरते हैं वह आगे जाकार एक महत्वपूर्ण आंकड़ा बनती है। इससे उस भाषा के विकास और संरक्षण को लेकर सरकार योजना बनाकर कार्य करती है। आज भारत में संस्कृत जानने वाले आधिकारिक रूप में देखें तो 2000 लोग ही है, जिन्होंने संस्कृत को जानने की आधिकारिक पुष्टि अपने द्वारा लिखे गए किसी भी दस्तावेज में की है। क्या वेदों उपनिषदों का भारत संस्कृत के इस पतन को रोकने के लिए कोई कदम उठाएगा ? आने वाले समय में संस्कृत के स्कूल कालेज खुल सकें, हमारे बच्चे संस्कृत में बोल सके, समझ सकें। इसलिए आज यह आवश्यक है कि संस्कृत को अपनी जानने वाली भाषा में हर दस्तावेज हर आधिकारिक स्तर पर स्थान दिलवाएं।
— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश