सामाजिक

अतिथि देवो भव बन गया अतिथि तुम कब जाओगे

“व्यस्त जीवन के कोहरे में धुँधली होते खो गई परंपरा, मेहमानों के स्वागत की रस्म दिमाग से विलुप्त हो गई, सूखी शाख सा हो गया मन जो कभी अपनेपन की हरियाली सा रहता था हराभरा”

सदियों से अतिथि सत्कार हमारी संस्कृति की विशेषता रही है, पर आजकल अतिथि देवो भव’ नहीं अतिथि अब विवशता का पर्याय बन चुके है।
पहले के ज़माने में मेहमान को भगवान समझा जाता था। बिना इक्तला दिए दो दिन के लिए आए होते थे पर मेज़बान के सम्मान से आग्रह करने पर चार दिन रुक जाते थे।
महाभारत में बताया गया है की जो व्यक्ति अतिथि को चरण धोने के लिए जल देते हैं, वे कभी यमद्वार नहीं देखते। अतिथि अपनी चरण रज के साथ जब प्रवेश करते हैं तो अपना समस्त पुण्य घर में छोड़ जाते हैं।
आजकल के ज़माने में परिवार में भी एक दूसरे के लिए समय नहीं होता वहाँ अतिथि को क्या संभालते, तभी तो फ़िल्में भी ऐसी बन रही अतिथि तुम कब जाओगे। आज के ज़माने में लोगों के पास इतना वक्त नहीं होता है कि वे अतिथि साथ बैठकर अपना कुछ समय व्यतीत कर पाए। खबर मिले की कोई आ रहा है तो घर में भूकंप आ जाता है। आने वाले को भी पता चल जाता है की अनमने मेहमान है। क्योंकि सत्कार में उष्मा ही नहीं होती। सबको प्रायवसी चाहिए। दो मेहमान आ जाए ओर बच्चों को अपना रूम देना पड़े तो तिलमिला उठते है, मम्मा ये लोग कब जाएंगे? और इस चक्कर में घर के बड़े भी मेहमान को रुकने का आग्रह नहीं करते, क्योंकि बच्चों से भी ज़्यादा खुद परेशान होते है। घर तो छोटे हो रहे है दिल भी छोटे हो गए है। आजकल रिश्तेदारी सिर्फ़ मोबाइल पर निभ रही है। शुभेच्छा देनी हो, या शौक़ जताना हो मैसेज कर दिया बात ख़त्म। सामने वाला भी खुश हाश बला टली घर पर आते तो ख़ातिरदारी करनी पड़ती।
हमारा देश संस्कृति और परंपराओं का देश है। अतिथि का दिल से आदर सत्कार करना हमारी परंपरा है। हमें  हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी अतिथि का महत्व समझा कर भारतीय मूल्यों को बचाने की कोशिश करनी चाहिए। घर आए अतिथि, याचक तथा पशु-पक्षियों का उचित सेवा-सत्कार करना हमारा कर्तव्य है। घर लेकर बैठे है तो दो लोग आएंगे भी। कोई हंमेशा के लिए नहीं रुकने वाला, चार दिन हम आदर से किसीको नहीं रख सकते? संबंध निभाने के लिए अगर थोड़ी तकलीफ़ उठानी भी पड़े तो क्या हुआ, ये चार दिन की तकलीफ़ आपके व्यक्तित्व और संस्कारों को परिभाषित करती है। ये मत भूलिए यही संबंध आपको कहीं न कहीं काम आते है। घर आए मेहमानों को चार दिन प्यार से आदर सत्कार से रखना चाहिए ये आदर्श परिवार की शोभा है, और कभी हमें जरूरत पड़े और किसीके वहाँ जाना पड़े तो नि:संकोच जा सकें।
— भावना ठाकर  ‘भावु’ 

*भावना ठाकर

बेंगलोर