राजनीति

मंदिर आपके, नियंत्रण सरकार का

मंदिर सदैव से सनातन आस्था का केंद्र रहे। धर्म से जुड़ने का माध्यम रहे। प्राचीन काल में धार्मिक शिक्षा गुरुकुल से आरंभ होती थी, जिससे धर्म, कर्म, अर्थ मोक्ष समस्त ज्ञान जन सामान्य को गुरुकुल शिक्षा से ही प्राप्त हो जाता था। भारत ऋषियों की भूमि रही, ऋषियों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका गुरुकुल संचालन द्वारा प्रजा का चरित्र निर्माण होती थी। राजा भी ऋषियों व संतों का इस हेतु अधिक से अधिक सहयोग करते थे। शस्त्र शास्त्र से सम्पन्न व्यक्तित्व बनकर गुरुकुल से बाहर आने वाले छात्र भारत के आधार की नींव बनते थे। प्रभु श्री राम से लेकर कृष्ण और चंद्रगुप्त तक भी गुरुकुल की भूमिका विशेष महत्व की रही। जिसके कारण भारत अजेय बना रहा। जब इस्लाम का आक्रमण भारत पर हुआ तब आक्रमण कारियो ने सबसे पहले भारत के मंदिरों को अपना लक्ष्य बनाया, मन्दिरों को लूटकर आक्रांताओ ने अपना सैन्यबल व धनबल मजबूत किया, वहीं हिन्दू समाज की आस्था को चोट पहुँचा कर अपने वर्चस्व को बताना उनकी पैशाचिकता का अंग बन गयी। इस्लाम जैसे जैसे भारत में आगे बढ़ा न केवल मंदिरों को तोड़ा गया, ऋषियों विद्वानों की हत्या की गई, पुस्तकालय जलाए गए। इस्लाम से लगातार संघर्ष के बाद भी हिन्दू समाज प्रत्येक सायं काल मंदिरों में सामूहिक आरती के लिए एकत्र होता रहा, यही एक प्रमुख कारण था कि मत, पंथ, वैचारिक भेद के होने के बाद भी समाज सक्षम होकर एकजुट खड़ा रहता था। अंग्रेजी सत्ता ने भी भारत पर गुलामी बबाये रखने के लिए मंदिरों व सन्तो को कभी स्वायत्ता नही सौंपी। भारत की स्वतंत्रता एक नया सवेरा लेकर आई थी। देश के हिन्दू समाज को लगा कि अब देश में पुनः मंदिरों का वैभव वापस लौटेगा, गुरुकुल आरंभ होंगे। किन्तु अंग्रेजो ने जाने से पहले अपने षड्यंत्र को भारत की शासकीय व्यवस्था में इतना घोल दिया कि हमने कांवेंट स्कूलों की ओर मार्ग कर लिया, गुरुकुल मंदिर हमारी दृष्टि से भिन्न होते चले गए। इसी दूरी का लाभ उठाकर सन 1981 में एक ऐसा कानून बना दिया गया जिसके अंतर्गत सनातन धर्म की कोई भी संस्था, मंदिर, तीर्थ आदि अपने कोष का उपयोग समाज सेवा कार्य, गुरुकुल, धार्मिक कार्य संचालन में नही कर सकता। परोक्ष रूप में मंदिरों को सरकारों के अधीन कर दिया गया। मंदिरों की समिति केवल धार्मिक कार्यों में सहयोग के निमित्त ही बची रह गई। जबकि मस्जिदों को अपने अलग मदरसे संचालन की स्वायत्तता के साथ ही कई प्रदेशों में सरकार द्वारा अनुदान दिया जाता है, इसी प्रकार मिशनरी कान्वेंट स्कूलों की भी मदद सरकारें अनुदान देकर करती है। जबकि सनातन मन्दिरो में आने वाली दान की राशि मन्दिरो के काम न आकर सरकारों द्वारा अन्य कार्यो में लगा दी जाती है, इसी राशि से मदरसों व चर्च को सहयोग किया जाता है। हिन्दू समाज के दान की राशि से यदि मदरसों और चर्च को सहयोग कितना सही है, यह तो जनता ही विचार कर सकती है, परन्तु यह अनवरत जारी है। दक्षिण की सरकारों में मुस्लिम व ईसाई वोटबैंक को बनाये रखने के लिए सरकारें मदरसों, मस्जिदों, चर्च, मिशनरी एजेंसियों को दिल खोलकर फंड देती है। जिसका उपयोग कहीं न कहीं सुदूर क्षेत्रों में धर्मांतरण को पोषित करने के लिए ही होता है। अर्थात हिन्दू समाज के दान से धर्मान्तरण का कार्य। अब हम विचार करें, की यह कानून कहाँ तक सार्थक है ? जबकि मंदिरों के दान का उपयोग मंदिर के संचालन में सामाजिक सेवाकार्य, गुरुकुल संचालन, संस्कृत अध्ययन के लिए किया जाना चाहिए। विश्व हिन्दू परिषद कई वर्षों से इस विषय को केंद्र सरकार के सामने रख रही है, अपने कार्यक्रम व अन्य माध्यमों से जन समाज के बीच भी यह विषय पहुँच रहा है। अब हिन्दू समाज जाग्रत होने लगा है, तर्क करने लगा है, प्रश्न करने लगा है। आवश्यक है केंद्रीय स्तर व प्रदेशिक स्तर पर मंदिरों के संचालन व प्रबंधन का अधिकार हिन्दू समाज को मिले। ताकि मन्दिरो के द्वारा समाजिक स्तर पर सेवा प्रकल्प स्थापित करके, गुरुकुल का संचालन करके, संस्कृत के अध्ययन केंद्र बढाकर हम भारत को पुनः वैभवशाली मार्ग पर अग्रेषित करें। साथ ही समाज भी इस हेतु तैयार हो, बिना किसी विवाद सनातन संस्थाओ का प्रबंधन व सेवा प्रकल्प संचालित किए जाए, हमारी उसमें भूमिका रहे। मंदिर आस्था व विश्वास का केंद्र बने, आने वाले भक्तों को स्वच्छ पानी, पदवेश उतारने, निःशुल्क प्रसादी से लेकर सनातन धर्म की जानकारी, मंदिर का इतिहास, हमारा इतिहास, इस्लामिक व अंग्रेजी आक्रमण की सही जानकारी आने वाली पीढ़ी को जानने को मिले। मंदिर संस्कृत अध्ययन का केंद्र बने, संस्कृत को प्रसारित करने में मंदिर व मंदिर द्वारा संचालित गुरुकुलों की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
समाज जाग्रत होकर इस विषय को उठाये, पंचायत, परिषद, निगम से लेकर विधान सभा व संसद तक जब यह विषय आएगा। तब सरकारों को विवश होकर सनातन संस्थाओ को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करना ही होगा।
— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश