कविता

अहसास

जाने क्यों मुझे लगता ही नहीं
अहसास भी होता है
कि उसके मन के तारों के झंकृत होने में
कुछ तो विशेष है,
वरना लोग तो अपनों को भी
भूलते जा रहे हैं,
परंतु उसके भाव
मेरे मन मस्तिष्क पर छा रहे हैं।
एक नन्ही सी जान
हमेशा गुदगुदाती ही नहीं
बहुत रुलाती भी है,
पर उसके अहसास की खुश्बू
चाहकर भी नहीं जाती है।
जमाना ऐसा है कि लोग तो
आजकल भगवान को भी
सिर्फ स्वार्थवश याद करते हैं,
परंतु वो ऐसी है कि
सोने से पहले रुलाती है
फिर प्यार की थपकी देकर सुलाती है।
मगर जगने से पहले ही
अपने अहसासों की खुश्बू
मन के कोने में समा देती है,
आँख खुलते ही वो
बाल क्रीड़ा करती हुई
अपने होने के अहसास से
अचरज में डाल देती है,
वो कौन है ये तो मुझे पता नहीं
पर किसी जन्म के रिश्तों से जुड़ी
अथवा ईश्वरीय कृपा से मुझसे रोज मिलती है,
मगर अब मुझे भी फर्क नहीं पड़ता
क्योंकि मेरे लिए तो वो बस
नन्ही सी परी है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921