कविता

आयी बरखा रानी!

रिमझिम रिमझिम बुन्दे बरसे,
झमाझम पावस, तन मन हरषे,
बागों में बहार महकी-महकी,
हरियाली ऋतु चहकी-चहकी।।
झर-झर झरते निर्मल झरने,
सजी सृष्टि रूपसी मन महकाने,
चली चट्टानों पर खेलती-कूदती,
सागर से मिलने सरिता उछलती।।
प्रकृति ने किया अनुपम श्रृंगार,
रंगबिरंगे सुंदर फूलों की बहार,
धानी चूनर लहराये पुलकित धरा,
नवजीवन का झंकार करे वसुंधरा।।
भर भर जीवन लुटाता पावस,
रवि रश्मियों संग खेले पावस,
खुशहाल जीवन, उमंगित आस,
प्रेम- दुलार का पावन एहसास।।
पुरवाई ले आयी मंद-मंद सुवास,
सृष्टि सौंदर्य, सजा-धजा मधुमास,
हर दिल में खुशी, आनंद, उल्लास,
आयी बरखा रानी, झूम झूम पावस।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८