कविता

सहयोग सद्भाव से तलाक

चलो मान लिया कि
आप बड़े संवेदनशील हैं
भोले भाले मिलनसार है
सबसे सहयोग का विचार रखते हैं।
आपकी देखा देखी
मुझे भी ये बीमारी लग गई,
सुख चैन मेरा छीन ले गई।
जाने कैसे आप झेल लेते हैं
ईर्ष्या, द्वेष तो सह कर भी
प्रसन्नचित रहते हैं,
गालियाँ खाकर भी धूल की तरह
छोड़कर आगे ही बढ़ रहे हैं,
आपके पीछे पीछे हम भी चल रहे हैं।
मगर अब पानी सिर से ऊपर
रोज रोज बह रहा है,
सहयोग, सद्भावना की
मेरी अपनी ही आदत से
मेरा जीवन दुष्कर हो रहा है।
अपना सब कुछ बिखर रहा है
मगर लोगों का नाक भौं सिकुड़ रहा है,
जैसे मैं उनका नौकर हो गया हूँ
सहयोग, सद्भाव बस करना
जैसे मेरे पास काम रह गया है।
लोग अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं
थोड़ी सी सफलता से बड़ा फूल रहे हैं,
धरा पर सबसे बुद्धिमान बन रहे हैं,
हमीं ने सिखाया पढ़ाया
आगे बढ़ने का मार्ग दिखाया
आज हमें की आँखें दिखा रहे हैं।
अब ये सब मुझसे सहन नहीं होता
कोई आगे बढ़े या चूल्हे भाड़ में जाये
मेरी अपनी बला से।
अब से आज से मैं सन्यास ले रहा हूँ
सहयोग, सद्भाव से तलाक ले रहा हूँ
स्वार्थी दुनिया को पैगाम दे रहा हूँ।
सिर्फ अपने हित के लिए अब
मैं सारे काम करुँगा,
जिसे भी अपना कहता रहा
जो कभी अपने थे ही नहीं
न रिश्ता, न संबंध रहा कभी।
मेरे प्यारे कथित शुभचिंतकों!
अब खुद की राह सँवारो तुम सब
क्योंकि अब मैं अपनी राह जा रहा हूँ,
अपना अंकुश भी साथ ले जा रहा हूँ
तुम सबको आजाद कर रहा हूँ।
तुम आगे बढ़ोगे या नहीं
बढ़ भी पाओगे या नहीं
बढ़ना चाहोगे भी या नहीं
ईमानदारी और समयबद्ध प्रयास
करोगे भी या नहीं,
खुद को गुमराह होने से
बचा पाओगे या नहीं,
अपनी ऐसी सोच ही नहीं
चिंता को भी विराम दे रहा हूँ,
आप सबको सहयोग करने की
सौगंध से आज से मुक्त हो रहा हूँ,
सहयोग, सद्भाव को आज
पूर्ण कैद में डाल स्वतंत्र हो रहा हूँ।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921