कविता

नारी की अस्मिता

हर नारी की कहानी एक ही जैसी लगती ,
कैसे कहूंँ मैं,
अंतर्मन में पीड़ा को छुपाएं
सपने को सजाती,
औरों पर
अपार स्नेह लुटाती,
स्वयं प्रेम की बोली के लिए तड़प जाती,
एक नारी की व्यथा  को
कौन समझे?,
उठो! अबला!
चेतनाप्रकाश है तुम्हारे जीवन में,
बदल दो!
और दिखला दो ! उन्हें भी!
कुछ कर गुजरने की
क्षमता तुममें भी !
आत्मनिर्भर बनो!
सम्मान की जिंदगी जीना सीखो!
पढ़ो! स्वयं को बदलो! औरों को भी बदलो!
सिसकियांँ बहाने का वक्त नहीं
नवपथ निष्पलक नेत्रों से तुम्हें देख रहा,
निकलो ! घर से बाहर
अपनी अस्मिता को पहचानो,
हर नारी की कहानी एक जैसी ही लगती।
— चेतनाप्रकाश चितेरी

चेतना सिंह 'चितेरी'

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