लघुकथा

घंटी

वह किसी को मारने-मूरने के हिसाब से तो आया नहीं था, पर भुखमरी के कारण चोरी-लूट करने को उसने अपना धर्म मान लिया था.
दीवार फांदकर वह घर में घुसा था और आगे-पीछे के दरवाजे पर ताला न लगा देखकर बाहर निकलने के बारे में निश्चिंत था.
वैसे तो वह बहुत बहादुर था, पर न जाने क्यों उसे घर में रहने वाली बुजुर्ग महिला की दृष्टि से भय लगने लगा, सो उसने जेब से अपना फोल्डिंग चाकू निकाला और महिला पर वार किए.
खड़े रहकर कोई कितने वार सह सकता है, वह भी गिर गई! लहूलुहान तो थी ही.
उसने अपना काम किया और नकदी-गहने का भंडार अपने हवाले करके जाने लगा.
तभी उसकी नजर सांप की एक तस्वीर पर पड़ी. उसे अपने अपराध-गुरु की बात याद आई. सांप किसी को काट ले तो उल्टा हो जाता है. वह पीछे मुड़कर तो देख नहीं सकता, इसलिए डर के मारे उल्टा होकर देखता है कि पीछे से कोई खतरा तो नहीं है!
उसने भी पीछे मुड़कर देखा. जहां-तहां उसकी उंगलियों के निशान मौजूद थे. जाने से पहले उन्हें मिटाने लगा. थोड़ी तस्सली करके उसने ज्यों ही बाहर जाने के लिए दरवाजा खोला, पुलिस ने उसे जकड़ लिया.
महिला के गिरते-गिरते इमरजेंसी बेल बज गई थी, जिसे पुलिस ने अकेली बुजुर्ग महिला के निवेदन पर आपात्काल के लिए लगवाया था.
आपात्कालीन घंटी के साथ ही चोर-लुटेरे-हत्यारे के अपराध की घंटी भी बज गई थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244