हास्य व्यंग्य

बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना

बचपन से लेकर आज तक मैं जब भी किसी को किसी के लिए किसी भी संदर्भ-प्रसंग में यह कहते हुए सुनता हूँ कि- ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना’, तो पता नहीं क्यों मेरा मन, मेरी सोच और मेरी भावना सहसा उस अनदेखे-अनजाने-अनसुने ‘अब्दुल्ला’ के साथ जाकर जुड़ जाती है- उसकी पक्षधर बनकर, पैरोकार बनकर, पूरी सहानुभूति के साथ! बचपन में समझ उतनी नहीं थी, तथापि मन यह सोचने पर मजबूर हो जाता था कि आख़िर यह ‘अब्दुल्ला’ कौन और कैसा बंदा रहा होगा? उसे अपने मानसिक पटल पर विजुअलाइज़ करने की तमाम कोशिशें करता था। मेरे मन में उसके रूप-स्वरूप, मन-मंशा, नीति-नीयत और आचार-व्यवहार को लेकर तरह-तरह के चित्र बनते-बिगड़ते रहते थे।

आज एक बार फिर, बातचीत के क्रम में मेरे एक बेहद अज़ीज़ दोस्त ने ख़ुद के लिए यह जुमला/मुहावरा प्रयोग किया, तो पुन: अब्दुल्ला की वो अधबनी-अनबनी मानसिक तस्वीरें मेरे दृष्टि-पटल पर कौंध गयीं। मैं सोचने लगा कि वाकई ‘अब्दुल्ला’ आला दर्जे की फ़कीराना तबियत का कोई बड़ा मस्त इंसान रहा होगा, ख़ुद में निहायत ख़ुश ! साथ ही, औरों की ख़ुशी में शरीक होने को तत्पर, आहूत-अनाहूत दूसरों के जश्न और जलसे में शामिल होने को ब-मसर्रत मौजूद, हर क़िस्म की छद्मभरी व्यावहारिक बनावट से दूर, किसी भी ओढ़ी हुई अथवा थोपित कृत्रिमता से परे, एकदम सीधा-सादा, सहज-सरल और अन्दर से पूरी तरह तरल इंसान, जो कथित रूप से किसी “बेगानी शादी” में झूम-झूमकर “दीवाना” हो गया होगा या यूँ कहें कि बारहा होता रहा होगा। उसकी वो ‘दीवानगी’ (जो संभवतः उसके लिए सर्वथा ‘स्वाभाविक’ रही होगी) लोगों को इतनी ‘अस्वाभाविक’ लगी होगी कि वह अनचाहे रूप से अपने समय और समाज में प्रचंड बहुमत से, मौन जनस्वीकृति से हँसी और उपहास का, ग़ैरज़रूरी उत्साह का (बल्कि ‘अति-उत्साह’ का) एक अजीब उदाहरण बन गया।

आज जब सोचता हूँ कि अपनी और अपनों की शादी में तो हर कोई ‘दीवाना’ हो सकता है, बल्कि होता ही है, लेकिन अपने इस ‘अब्दुल्ला’ का मनमौजीपन, उसकी विशाल-हृदयता तो ग़ज़ब की है, कमाल की है, बेमिसाल है, बेनज़ीर है, लासानी है, जिसने उसे “बेगानी शादी” में ‘दीवाना’ होने की मानसिक सुकून वाली ऊँची भाव-स्थिति प्रदान कर दी। आज सोचता हूँ, तो पाता हूँ कि एक तरफ़ ‘बेगानी शादी’ में ‘दीवानगी’ की मस्तीभरी ‘भाव-दशा’ को प्राप्त अपना यह हृदयजीवी ‘अब्दुल्ला’ है, जो बेगाने सुख में भी झूमता है, नाचता है, गाता है। दूसरी तरफ़ हम और हमारे यथाकथित बुद्धिजीवी लोग हैं, जो कई बार ख़ुद के सम्मुख उपलब्ध ख़ुद के ही हिस्से का सुख और आनन्द भोग पाने में नाकाम हो जाते हैं। वस्तुतः ये जो ‘हृदयजीवी अब्दुल्ला’ है न, वो अन्दर से मस्त है, और ‘बुद्धिजीवी दुनिया’ अन्दर से त्रस्त है। अनुभव यह बताता है कि ख़ुशी अन्दर से आती है। ख़ुशी या प्रसन्नता कोई बाह्य जगत का उत्पाद नहीं है, यह तो मूलतः अन्तस की सर्जना है, अन्दर से ही उपजती है। यह अलग बात है कि इंसान उम्रभर ख़ुशी और सुकून की तलाश करते हुए बाह्य जीवन की मृग-मरीचिका में भटकता रह जाता है- ‘कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूँढ़े वन माँहि’ जैसी स्थिति !

आज अगर ग़ौर से देखा जाये, तो दूसरों की शादी या किसी भी शुभ कार्य में शामिल होकर ‘रंग में भंग’ करने से लेकर बिना शामिल हुए ही ‘टाँग अड़ाने’, दूर बैठकर ‘ख़लल डालने’ और बीच में आकर ‘लकड़ी लगाने’ वालों की कमी नहीं है। ऐसे में, अपना वो अनदेखा-अनजाना अब्दुल्ला कितना बढ़िया और मस्तमौला इंसान लगने लगता है! आज जब मैं उसके मन-मूड और शख़्सियत को समझने की कोशिश में मन-ही-मन उसकी छवि को, इमेज को, विजुअलाइज़ करने चलता हूँ, तो ’60 के दशक में रिलीज़ हुईं फ़िल्म ‘जिस देश में गंगा बहती है’ का एक शैलेन्द्र-कृत गीत अनायास ही ज़ुबान पर आ जाता है, जिसके अन्तिम अन्तरे में अपना बदनाम और उपहसित ‘अब्दुल्ला’ (राजकपूर) एक दार्शिकाना अंदाज़ में गम्भीर चिंतन को कुरेदने वाली प्रश्नात्मकता के साथ जवाब देते हुए एक बड़े ‘पते की बात’ कहता है कि-

अपना-बेगाना कौन, जाना-अनजाना कौन?
अपने दिल से पूछो, दिल को पहचाना कौन?
पल में लुट जाता है, यूँ ही बह जाता है।
शादी किसी की हो, अपना दिल गाता है।
बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना!

फ़िल्म के गाने में अपने अब्दुल्ला भाई का यह जवाब जिस सवाल पर केन्द्रित है, एक नज़र उस पर भी डाल लेना कोई कम दिलचस्प नहीं होगा। वजह यही कि जिस ‘वजह’ से बेचारा अब्दुल्ला किसी बेगानी शादी में ‘दीवाना’ होकर हँसी का पात्र बना होगा, उपहसित हुआ होगा, उसके बारे में बराती-घराती सहित सारे चश्मदीद ही नहीं, बल्कि स्वयं दुल्हन भी दुनियाबी दायरे में रहकर, सोच की सामान्य परिधि में घिरकर, कमोवेश यही कुछ सोचती रही होगी कि-

दुल्हन बनूँगी मैं, डोली चढ़ूँगी मैं।
दूर कहीं बालम के, दिल में रहूँगी मैं।
तुम तो पराये हो, यूँ ही ललचाये हो।
जाने किस दुनिया से, जाने क्यूँ आये हो?

यहाँ ये सवाल कोई ख़ास अहमियत नहीं रखते कि ‘अब्दुल्ला’ कौन था? कहाँ से या किस दुनिया से आया था? किस ‘बेगानी शादी’ में शरीक हुआ था? अहमियत तो इस बात की है कि ‘अब्दुल्ला’ फ़ितरतन मनमौज़ी है, मस्तमौला है, बड़े दिल का आदमक़द बंदा है। अनमने समाज का एक मनमना इंसान है! वो बाहरी दुनिया से छोटा-सा तराना (या यूँ कहें कि- ‘ख़ुश होने का एक ख़ूबसूरत बहाना’) किसी उत्प्रेरक की तरह उठाकर अपनी ख़ुशी ख़ुद के अन्दर से उगाने का हुनर जानता है। क्या हर्ज है कि वो यथाकथित सभ्य समाज के मानक नहीं जानता, ख़ुद की मस्ती में जीता है, झूमता है, गाता है!? और नि:संदेह- ‘ऐसे मनमौजी को मुश्किल है समझाना।’ शायद इसीलिए- ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना!’

— जितेन्द्र जौहर

जितेन्द्र जौहर

जन्म : 20 जुलाई,1971 (होरोस्कोप) ◆ जन्म-स्थान : कन्नौज, उप्र । ◆ शिक्षा : एम.ए. (अंग्रेज़ी : भाषा एवं साहित्य) बी.एड., सी.सी.ए.। (परास्नातक स्तर पर बैच टॉपर)। ◆ सम्प्रति : ए.बी.आई. कॉलेज, रेणुसागर । ◆ लेखन : गीत, ग़ज़ल, दोहा, मुक्तछंद, हाइकु, मुक्तक/रुबाई, हास्य-व्यंग्य, लघुकथा, समीक्षा, आलेख, भूमिका, आदि। हिन्दी एवं अंग्रेज़ी में समानान्तर लेखन। ◆ विशेष पहचान : प्रखर काव्य-समालोचक, छंद-मर्मज्ञ, ग़ज़ल एवं ‘मुक्तक/रुबाई विशेषज्ञ’ के रूप में देश-देशान्तर में विशेष पहचान। ◆ भूमिका-लेखन : हिन्दी के सुप्रसिद्ध एवं वरिष्‍ठ लेखकों के अनगिनत मानक संग्रहों में सारगर्भित ब्लर्ब/फ़्लैप एवं भूमिका-लेखन । ◆ प्रसारण : ईटीवी के लोकप्रिय कार्यक्रम ‘गुदगुदी’ एवं आकाशवाणी के अलावा सिटी चैनल्स पर काव्य-पाठ एवं भेंटवार्ताओं के अनेक प्रसारण । वीडियो एल्बम में फ़िल्मांकित रचना शामिल । ◆ प्रकाशन : देश-विदेश की लगभग 250 पत्र-पत्रिकाओं एवं 50 से अधिक समवेत संकलनों में गद्य-पद्य रचनाएँ प्रकाशित। ◆ कृतियाँ : ‘रोशनी का घट’, ‘अरण्य का सौन्दर्य’, ‘मुक्तक-मणि’ (डॉ. मधुसूदन साहा के चयनित एवं संपादित मुक्तकों का संग्रह)। ‘मुक्तक दशक’ (देश के दस प्रतिनिधि मुक्तककार, समालोचना सहित)। ◆ अनुवाद : कथा-संग्रह ‘ऑफ़रिंग्स’ (अंग्रेज़ी से हिन्दी)। ◆ स्तम्भ-लेखन : बहुचर्चित साहित्यिक स्तम्भ ‘तीसरी आँख ’, 'मी जौहर बोलतोय' एवं ‘शब्द-संधान’ के स्तम्भकार। ◆ संपादकीय सलाहकार : त्रैमा. ‘प्रेरणा’ (शाहजहाँपुर), 'साहित्य-ऋचा’ (ग़ाज़ियाबाद) एवं 'नये हस्ताक्षर' (हरियाणा) के संपादकीय सलाहकार। ◆ अतिथि संपादक : (1) त्रैमा. 'सरस्वती सुमन’ का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुचर्चित ‘मुक्तक/ रुबाई विशेषांक’ । (2) ‘आकार’(अनि.) का ‘मुक्तक/रुबाई विशेषांक'। (3) त्रैमा. 'साहित्य त्रिवेणी' (कोलकाता) का 'प्रेम विशेषांक' । ◆ विशेष: (1) स्तम्भकारिता पर शोधकार्य : आगरा विश्वविद्यालय में शोधार्थी द्वारा एक लघु शोध प्रबंध 'तीसरी आँख : एक साहित्यिक अनुशीलन' का कार्य सम्पन्न । (2) अनेक रचनाओं का पंजाबी, गुजराती, अवधी एवं असमिया भाषा में भी अनुवाद हुआ है । (3) अनेक रचनाएँ संगीतबद्ध तथा गायकों द्वारा गायन। ◆ अन्य गतिविधियाँ : (1) विभिन्न ‘पुरस्कार चयन-समितियों’ के निर्णायक-मंडल में शामिल। अनेक राष्ट्रीय एवं ज़ोनल स्तरीय सांस्कृतिक/साहित्यिक आयोजनों में ज्यूरी मेम्बर । (2) साहित्यिक गरिमापूर्ण मंच-संचालन में सुदक्ष । (3) अनेक स्तरीय साहित्यिक समारोहों में मुख्य वक्ता एवं मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत। (4) अनेक फ़ेसबुक-समूहों में विशेष आमंत्रित विधा-विशेषज्ञ, एडमिन एवं निर्णायक । √ ◆ कार्यशालाएँ : उ. म. क्षे. सांस्कृतिक केन्द्र, (सांस्कृतिक मंत्रालय, भारत सरकार) एवं ‘स्टार इण्डिया फ़ाउण्डेशन’ द्वारा आयोजित विद्यालयी/महाविद्यालयी कार्यशालाओं में ‘फोनेटिक्स’, ‘सेल्फ़-डेवलपमेण्ट’, ‘कम्यूनिकेशन एण्ड प्रेज़ेण्टेशन स्किल', 'Write Right' एवं 'Art of Public Speaking', आदि अनेक उपयोगी विषयों के अतिरिक्त ‘छंद और काव्य-सृजन’ पर कार्यशालाओं में रिसोर्स पर्सन/मुख्य वक्ता के रूप में प्रभावपूर्ण भागीदारी एवं 'क्वॉलिटी सर्किल' के दर्जनाधिक Case Presentations में co-ordinator की भूमिका का सफल निर्वाह । ◆ अनेक schools, colleges & institutions की प्रबंध समितियों में Educational advisor & resource person के रूप में स्थाई रूप से नामित सदस्य। Qualitative teaching को सुनिश्चित करने की दिशा में नियमित रूप से सक्रिय भूमिका का निर्वाह! ◆ सम्मान: अ.भा.वै. महासभा द्वारा ‘रजत-प्रतिमा', श्रीमती सरस्वती सिंह हिन्दी विभूति सम्मान (ग्यारह हज़ार रुपये, कादम्बरी संस्था, जबलपुर), पं. संतोष तिवारी स्मृति सम्मान, साहित्यश्री(के.औ.सु.ब. इकाई मप्र), सृजन-सम्मान 2010, आदि अनेकानेक सम्मान। ◆ रचनात्मक उपस्थिति : वेब पता: http://jitendrajauhar.blogspot.com/ फ़ेसबुक: http://facebook.com/jitendrajauhar ■ संपर्क एवं संवाद : • आई आर- 13/3, रेणुसागर, सोनभद्र (उप्र) 231218. • ईमेल : jjauharpoet@gmail.com • मोबाइल : 9450320472