सामाजिक

उत्सवों का देश भारत

भारत देश उत्सवों व त्योहारों का देश है। जिस देश की संस्कृति जितनी उन्नत होगी वहां उतने ही त्यौहार वह उत्सव भी मनाए जाएंगे। साथ ही इसमें वैज्ञानिकता जुड़ने से इसकी विशेषता और भी दुगनी हो जाती है और इसी से अर्थव्यवस्था भी स्वाभाविक रूप से आबद्ध हो जाती है। तयौहार व  उत्सव होंगे तो अर्थव्यवस्था भी  संचारित होगी । पर दूसरी ओर कुछ देश और उनके मत  जिन्हें वे हम धर्म भी कहते हैं ,उन में संस्कृति नाम की कोई चीज नहीं है। क्योंकि सांस्कृतिक मूल्य धर्म से ही आबद्ध होते हैं।

 इस कारण उनके मत की नींव ही जब बर्बरता , अन्याय, शोषण , अत्याचार तथा अनाचार आदि पर रखी गई है , तो वहां सांस्कृतिक कैसे पनपती ।सांस्कृतिक परंपराएं कैसे बनती ।जबकि वे लूटमार, हत्या, अपहरण को ही अपना धार्मिक कृत्य मानते रहे हैं ।तो वे इसे ही तो करणीय कृत्य मानेंगे।  इसी कारण उनके यहां सांस्कृतिक विरासत नाम की कोई चीज है ही नहीं और जो सांस्कृतिक अवशेष प्रकट हो रहे हैं उन्हें भी वे अपनाने को भी तैयार नहीं हैं या अपने इतिहास को भी स्वीकार करने को तैयार नही हैं क्योंकि वे  इस संपन्न संस्कृति को ही तो नष्ट करना अपना धार्मिक कृत्य  मानकर उनके पूर्व पुरुष उसे नष्ट करने को ही अपना धर्म मानते रहे हैं।
 परंतु दूसरी ओर भारतवर्ष  की संस्कृति सबके सुख की कामना करता रही है  और इस सुख में सबकी मानवीय सम्मति को भी आमंत्रित करता रही है ।ॐ सहनाववतु।सहनौ ……. का उद्घोष भारतवर्ष की संस्कृति ने विश्व  भर को दिया । सँगच्छध्वम सनवद्धवम ……  हम  सब एक साथ चले,एक साथ बोलें,हमारे मन एक हों। परन्तु हमारा सन्देश हर प्राणी के साथ है।जब कि दूसरे मतों में यह केबल अपने मत के अनुयायियों के लिए है ।यही अंतर भारतीय संस्कृति और अभारतीय संस्कृतियों में है।
परंतु ये महा विचार उन लूटमार वाली संस्कृति के लोगों को कैसे रुचिकर लग सकता है क्योंकि वह तलवार लेकर अपने सुख के लिए दूसरों को कष्ट ही नहीं, उनकी हत्या तक करने को सदा उद्यत रहे।और उद्यत ही नही वे हत्या, आगजनी,लूटमार आदि करते भी रहे और अब भी कर रहे हैं। इसीलिए वहां संस्कृति का विकास कैसे होता। परंतु एक सिद्धांत है कि सुख और सुंदरता जो सत्य हो और शिव हो सब के सब को स्वत: ही अपनी ओर आकर्षित करती है। यही कारण रहा कि पूर्व के देशों में ही नहीं पश्चिम के देशों में भी फिर से भारतीय सांस्कृतिक जागरण की लहर उठने लगी है । तुम भी खुश रहो और हम भी खुश रहें ।यानि सब सुख पूर्वक जीवन जियें ।यह विचार फिर से आकर्षित करने लगा है ।इसी कारण लोग भारतीय संस्कृति की ओर स्वत: ही आकर्षित होते चले आ रहे हैं।
  इसीलिए आज एक्स इस्लाम यानि पूर्व में इस्लाम के अन्यायी थे इस्लाम पढ़ कर दूसरों से तुलना कर के अब नही रहे, का आंदोलन पूरे संसार में तेजी से फैल रहा है ।लोग स्वत: उत्साह  पूर्वक इस भारतीय सांस्कृतिक धारा की ओर आकर्षित हो रहे हैं । इसीलिए समय-समय पर कोई गैर हिंदू यदि श्रीमद् गीता के श्लोक कंठस्थ  करके सुरीली आवाज से उच्चारित करता है तो कोई  गायन विद्या को ही अपना पेशा बनाए हुए, कितने ही ऐसे स्वनाम धन्य  गायक हुए जिन्होंने न केवल सुंदर सुरीली आवाज में अपितु भक्ति भाव से भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को अपना  कंठाहार बना लिया ।
मां शारदा के मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने की सामर्थ जब मुस्लिम गायक में  नहीं रही तो वह मंदिर के नीचे से अपनी स्वरांजलि से मां शारदा का गुणगान श्रद्धापूर्वक करते रहे ।इसी कड़ी में अनेकों दूसरे लोग हैं जो अपनी प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक धारा की ओर  आकर्षित हो जाते हैं। पर यही कुछ दकियानूसी कट्टरवादी एवं अमानवीय  लोगों को नागवार गुजरता है क्योंकि इससे उनकी दुकानदारी ठप पड़ती  हुई  प्रतीत होती है। इसीलिए वे समय-समय पर अपनी इस सोच को फतवा के नाम पर जग जाहिर करते हैं कि कोई भगवान गणेश की पूजा में क्यों सम्मिलित हुआ या कोई कावड़ लेकर क्यों आया या कोई अपने घर मैं राम जी गणेश जी को क्यों विराजित व  स्थापित कर रहा है। इसे देखकर उनके तन बदन में आग लग जाती है क्योंकि इससे उनका अधिकार वादी सिद्धांत बाधित होता है और उनकी पोल खुलने का डर भी सताता रहता है।
 असल में कसूर उनका नहीं उन्होंने तो यही सब पढ़ा ,रटा और समझा है और उसको समझ कर ही यह जिम्मेदारी दी जाती है कि समाज  में उन्हें केवल नफरत ही बांटनी है ,नफरत के ही बीज बोने हैं, पारस्परिक भाईचारा ऊपर ऊपर से कहना है ,पर करना नहीं है ,अपने आप को दूसरे यानी जो आप के मजहब के नही है उन से  हर तरह से अलग रखना है। इसीलिए वे ऐसा  करते हैं ।
 उनकी इस भावना का ही आदर किया जाए ,तो जो लिखा है वह उसी के अनुसार काम कर रहे हैं ।पर उनसे पूछो कि दूसरे किसी भगवान की पूजा नहीं करना केवल यह ही नहीं लिखा है ।लिखा तो यह भी है कि हाथ के बदले हाथ काट दिया जाए या आंख फोड़ दी जाए या चौराहे पर सिर कलम कर दिया जाए इसे भी तो कहो पर वह इसे नहीं पढ़ते क्योंकि जल्दी ही उनका नंबर भी तो इन्हीं ऊपर घोषित अपराध में आ सकता है इसीलिए वह इसे नहीं पढ़ते या बताते नहीं या इसे चालाकी से छुपा लेते हैं अगला पहरा भाई जो लिखा है वह तो लिखा ही रहेगा और आप उसे कैसे मिटा सकते हैं पर जो लिखा है उसे पूरा तो  पढ़ो और पूरा तो करो या उस पर पूरा तो चलो यहां तो आपकी जुबान और कलम दोनों ही चुप हो जाती हैं । तो क्या इससे तुम्हारा दोगलापन सिद्ध नहीं होता है और जो सामर्थ है उसे  कुछ भी नहीं कह सकते हो क्योंकि वे केवल निर्बल औरतें, असहाय जन या गरीब गरबा  पर ही ये  अपने  मानवीय सिद्धांत लादते हैं। कैसा आश्चर्यपूर्ण दोगलापन  है ।इसलिए आप यदि पढ़ लिखकर भी इन पर चलना चाहते हैं ,तो सारे लिखे पर चलो ,नहीं तो जहां जिस देश में रह रहे हो उसका उनके वासियों का उनकी संस्कृति का जो कि कभी तुम्हारी भी संस्कृति थी , उस सब का भी कभी सम्मान करके देखो कभी प्यार से रह कर देखो ,कितना आनंद आएगा या प्यार नाम की चीज या दूसरों को सम्मान देने की बात आप कभी सीखेंगे ही नहीं, तो विश्व में कैसे शांति स्थापित होगी ।यह अपने आप एक बड़ा प्रश्न है। उन के समाज के  बुद्धिजीवी इस पर बिना डरे विचार करें तो देश मे ही नही सम्पूर्ण विश्व  में शांति स्थापित हो जाएगी।तब मानव जाति कितना सकून महसूस करेंगी।और आप भी कितना सकून या शांति अनुभव करोगे।पर यह तभी होगा जब एक बार आप मानवीयता को अपना कर तो देखें।
— डॉ वेद प्रकाश शर्मा

डॉ. वेद व्यथित

ख्यात नाम : डॉ. वेद व्यथित नाम : वेद प्रकाश शर्मा जन्म तिथि : अप्रैल 9,1956 शिक्षा : एम्० ए० (हिंदी ),पी एच ० डी० शोध का विषय "नागार्जुन के साहित्य में राजनीतिक चेतना मेरठ विश्व विद्यालय मेरठ वर्तमान पता : अनुकम्पा -1577 सेक्टर -3 ,फरीदाबाद -121004 फोन नम्बर : 0129-2302834 , 09868842688 ईमेल : dr.vedvyathit@gmail.com Blog : http://sahiytasrajakved.blogspot.com सम्प्रति : अध्यक्ष - भारतीय साहित्यकार संघ (पंजी ) संयोजक - सामाजिक न्याय मंच (पंजी) उपाध्यक्ष - हम कलम साहित्यिक संस्था (पंजी ) शोध सहायक - अंतर्राष्ट्रीय पुनर्जन्म एवं मृत्योपरांत जीवन शोध केंद्र इंदौर ,भारत परामर्श दाता - समवेत सुमन ग्रन्थ माला सलाहकार - हिमालय और हिंदुस्तान विशेष प्रतिनिधि - कल्पान्त सम्पादकीय परामर्श - ब्रह्म चेतना सम्पादकीय सलाहकार - लोक पुकार साप्ताहिक पत्र संस्थापक सदस्य - अखिल भारतीय साहित्य परिषद ,हरियाणा प्रान्त पूर्व सम्पादक - चरू (साहित्यिक पत्र ) पूर्व प्रांतीय सन्गठन मंत्री - अखिल भारतीय साहित्य परिषद परामर्श दाता : www.mohantimes .com (इ पत्रिका ) जापानी हिंदी कवि सम्मेलनों में सहभागिता अनुवाद : जापानी,रुसी ,फ्रेंच , नेपाली तथा पंजाबी भाषा में रचनाओं का अनुवाद हो चुका है प्रकाशन : मधुरिमा (काव्य नाटक ) १९८४ आखिर वह क्या करे (उपन्यास )१९९६ बीत गये वे पल (संस्मरण )२००२ आधुनिक हिंदी साहित्य में नागार्जुन (आलोचना )२००७ भारत में जातीय साम्प्रदायिकता (उपन्यास )२००८ अंतर्मन (काव्य संकलन )२००९ न्याय याचना (खंड काव्य ) 2011 साहित्य पर शोध : 'बीत गए वो पल' संस्मरण में सामाजिक चेतना कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय कुरुक्षेत्र 'आखिर वह क्या करे ' उपन्यास में अन्तर्द्वन्द की अवधारणा विनायक मिशन्स विश्व विद्यालय तमिल नाडू 'भारत में जातीय साम्प्रदायिकता ' उपन्यास में सामाजिक बोध krukshetr विश्व विद्यालय 'मधुरिमा' काव्य नाटक पर शोध कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय नवीन सर्जन : * "व्यक्ति चित्र " नामक नवीं विधा का सर्जन किया है * "त्रि पदी" काव्य की नई विधा का सर्जन किया है अन्य *कुरुक्षेत्र विश्व विद्यालय में आयोजित एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में अंतिम सत्र की अध्यक्षता * शताधिक साहित्यिक समारोह व गोष्ठियों की अध्यक्षता की है अंर्तजाल (Internet) पर प्रकाशित विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशन : www.pravasiduniya.com www.sahityashilpi.com www.p4poetry.com http://sakhikabira.blogspot.com http://aakhrkalsh.blogspot.com http://blog4varta.blogspot.com http://utsahi.blogspot.com www.chrchamnch.com www.janokti.com www.srijangatha.com www.khabarindya.com etc. सम्मान : साहित्य सर्जन के लिए "समाज गौरव "सम्मान भारतीय साहित्यकार संसद द्वारा "मोहन राकेश शिखिर सम्मान पत्रकार विश्व बन्धु सम्मान युवा कार्यक्रम एनम खेल मंत्रालय भारत सरकार द्वारा सम्मान हिमालय और हिंदुस्तान एवार्ड हरियाणा सरकार द्वारा आपात काल के विरुद्ध किये संघर्ष के लिए ताम्र पत्र से सम्मानित विभिन्न विधाओं में निरंतर लेखन....