गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कहाँ जायें किधर को किस गली में
रहा जाता नहीं है बेकली में

जहाँ मतभेद इतने और रगड़े
मज़ा आये कहाँ से मंडली में

सु-सपनों के ज़हाज़ों का ज़ख़ीरा
पड़ा दिल के समुन्दर की तली में

ज़माने की हवा अँड़सी प्रदूषित
हमारी साँस की सँकरी नली में

रही संभावना जो गुल खिले की
गयी मुरझा तमन्ना की कली में

सितमगर में दिखा कोई रहमदिल
नज़र मासूमियत आयी छली में

विदा करना इन्हें है आ गये जो
बुरे दिन ज़िंदगी अच्छी-भली में

— केशव शरण 

केशव शरण

वाराणसी 9415295137