कविता

रूठना

रूठो ना हमसे मेरी सनम
ये प्यार अजीब सौदाई है
गैरों से क्यों उम्मीद करूँ
तुँ ही मेरी सुर शहनाई है

कल तक चले थे साथ साथ
आज क्यूं ये उलझन आई है
रब ने बनाया है तेरा रखवाला
फिर मन में हलचल क्यूं आई है

पग पग पे है मोहब्बत में ठोकर
हमसफर मेरे मन को तुँ भायी है
दुःख सुख सह लेगें जीवन में
फिर क्यूं गम व तन्हाई      है

छैड़ो तुम सुर के वो सरगम
जो पीपल तले तुम गायी है
अय पपीहरा कुछ ना कहना
मेहबूब मेरी आज शरमाई है

नतीजा चाहे जो कुछ हो जाये
हमको इसकी परवाह    नहीं
जग में जिन्दा है अपना प्रेम
गैरों से कोई तकरार     नहीं

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088