हास्य व्यंग्य

राजघाट की सिसकी (व्यंग्य)

भारत नदियों का देश है। नदियों पर घाट होते हैं। इन घाटों पर नदी के किनारे रहनेवाले गाँववासी पानी का उपयोग अपनी ज़रूरत के अनुसार करते हैं। कुछ कपड़े धोते हैं तो कुछ पाप। कपड़े धोने से नदी का पानी अशुद्ध हो जाता है और पाप धोने से अपवित्र। देश में नदियों के स्वच्छता अभियान चलने के कारण वे कम अशुद्ध हो रही है। किंतु पापियों की संख्या में कल्पनातीत बढ़ोतरी हुई है। इसलिए देश की नदियाँ अपवित्र हो रही हैं। गंगा नदी पापियों के काम की नदी है। ये हर युग में पाप धोने के काम आती है। इसके अवतरण से अब तक इसके पाप धोने की गुणवत्ता में रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा है। आप बड़े से बड़ा पाप कीजिए। बस एक डुबकी में आप पवित्र हो जायेंगे। ये पवित्रता जीवनपर्यंत बनी रहती है। पापियों का वर्तमान चंगा है, क्योंकि पाप धोने के लिए गंगा है।
हमारे देश में कुछ घाट ऐसे भी हैं जो नदियों पर नहीं बल्कि राजधानी में हैं। ये घाट नदी तट के घाटों से अलग होते हैं। ना नहाने के काम आते हैं ना पाप धोने के। जैसे नदियों में गंगा जी की पवित्रता का मुकाबला नहीं वैसे ही इस प्रकार के घाटों में राजघाट का शानी नहीं। हमारे देश में चुनाव जीतकर सरकार बनाने के बाद राज करने के लिए तत्पर प्रधानमंत्री बननेवाला सबसे पहले यहाँ जाता है, इसलिए इसे राजघाट कहते हैं। राजघाट यानि राजा का घाट। पर इस घाट पर जनता नहीं, नेता (राजा) अपने पाप धोने आते हैं। यहाँ बैठकर पाप धोने के बाद उसे राम धुन के नील में डुबोकर और अधिक चमकदार करते हैं। नेता जी भले ही घाट-घाट का पानी पिये हुए हो लेकिन जब तक राजघाट पर नाक नहीं रगड़ेंगे, वे सम्मान के हकदार नहीं।संसार जिस तरह ताजमहल को शाहजहाँ के मुमताज के प्रति उसके प्रेम का प्रतीक मानता है ( ये बात और है कि उसने अपनी ही साली से बेगम मुमताज के मरने के बाद शादी कर ली थी, शायद यह उसकी मरहूम मेहबूबा को श्रद्धांजलि थी) , उसी प्रकार राजघाट को सत्य निष्ठा का प्रतीक माना जाता है। संसार के खूंखार, मक्कार और झूठे यहाँ आकर सिर नवाते हैं और अक्सर सत्य-अहिंसा की शपथ लेते हैं। आजकल इसी असत्याग्रह को सत्याग्रह जाता है। खूब पाप करो। झूठ बोलो। घोटाले करो। भ्रष्टाचार करो। राजघाट पर बैठ जाओ एक दिन के लिए। सारे पाप धुल जायेंगे। गंगा जी एक डुबकी में पाप धो देती है और राजघाट एक दिन में।
मैं भी इस रविवार राजघाट गया था। वहाँ सत्याग्रह चल रहा था। मैं भी पुष्पांजलि ले कर जब ‘हे राम’ के सामने नतमस्तक हुआ तो एक सिसकी का आभास हुआ, लगा –
“राजघाट पर चुपके-चुपके रो रहा था गाँधी
बाद मरण के कब्र में अंधा हो रहा था गाँधी।”

— शरद सुनेरी