कविता

जुदाई

रात नींद रूठ उड़ जाती     है
तन्हाई में रात  हमें तड़पाती हे
कैसी रोग दिया मेरे   हमदम
जुदाई की एहसास रूलाती है

दिल ने तुमको बहुत चाहा था
जीवन ना था कभी मेरी बोझिल
पर जब से हुई तेरी हमारी जुदाई
खुशियों की टूट गई है       महल

जब जीवन में आई है मोहब्बत
इश्क ने लिख दी थी नई इबादत
कितना मनोरम था वो      मंजर
सोंचा था प्रेम में कर दूंगा शहादत

पर तुमने दिखलाई बगावत का फंदा
हार गया मैं सीधा सादा गॉव का बंदा
तेरे लिये घर द्वार मैं  बिल्कुल छोड़ा
पर तुमने हम से नाता ही है      तोड़ा

मधुशाला से जुड़ गया अब मेरा नाता
अंगूर की बेटी से रिश्ता बना      आता
किस जुर्म की सजा हमको है तुँ दिलाई
मेरी तोहब्बत तुम्हें क्यूं नहीं है।     भायी

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088