कविता

दास्तां

गार्दिश में छुपी जीवन की दास्तां
सबको मैं सुनाने अब आया    हूँ
जग वाले की फितरत की कहानी
सुनाने का आज अवसर मैं पाया हूँ

वक्त ने किया जब जब हम पर प्रहार
जीवन कष्टों की साया      था    छाया
वक्त ने जब जब दिया था हमें     साथ
खुशियों का परचम लहराया        हूँ

दोस्त यहाँ मतलब से सब हैं  बन जाते
पर दुश्मन की जग में कोई कमी नहीं
दुनियाँ खड़ी है स्वार्थ की जमीन पर
मजबूरी की पग पग स्वाद चखी यहीं.

सब जन को मैंने समझा था परिजन
पर सबने धोखा का उपहार     दिया
पॉकेट में जब तक था रूपये  भरा
सब जन का था प्यारा अपना बना

धनवानों के रिश्ते सब हैं बन जाते
दीन को कोई  अपना ना होता है
पूजा होती स्वार्थ की मूरत      की
वर्ना कोई अपना ना होता      है

बहुत ठोकरे खाई है यहाँ हमने
हर ठोकर सीख दे जाता     है
दर्द भले सीने में लगता      है
पर पाठ एक पढ़ा जाता।    है

उतार चढ़ाव की जीवन है नगमा
सूरज जब धरा पे ढल जाता।  है
कोई अपना ना दीखता है जग में
अपनापन तम में छुप जाता है

जब जब स्वार्थ ने दी है दस्तक
मैंने धोखा जग में खाया      है
मतलब पूरा हो जाते ही मानव
सब कुछ भुला खो आया है

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088