साइकिल की सवारी
राजन के पापा ने दी साइकिल,
स्कूल है जाता उसपर सवार।
मस्ती करते वह नहीं है थकता,
मिलता इससे खुशियां अपार।
जन्म दिन का राजन ने पाया,
अपने पापा से यह उपहार।
खुशियां थमने का नाम न लेता,
घर आंगन हो रहा गुलजार।
सुबह-सुबह वह साइकिल की,
सेवा करता खूब उपचार।
साफ़ सफाई करने में व्यस्त,
मिलता उसे खुशियां हजार।
आज़ राजन साइकिल पर,
चढ़कर दिखलाने लगा होशियारी।
गिरा ज़मीन पर जमी पर धड़ाम से,
चलीं गईं सब उनकी खुशियां सारी।
पापा आकर फ़िर उसे समझाएं,
साइकिल से मत करो खिलवाड़।
साइकिल है एक सुंदर व उत्तम साधन ,
मत करो साइकल से कभी तकरार।
— डॉ. अशोक