बाल कहानी

गुलाल की खुशबू

रामू और नवनीत की दोस्ती की चर्चा पूरे शास्त्री बाग मुहल्ले में होती रहती थी।
बचपन से एक ही स्कूल में पढ़ने और एक ही मोहल्ले में आस पास रहने के कारण इस रिश्ते को आगे बढ़ाने में मदद मिलीं थीं।
रामू के दोस्तों में शामिल नवनीत, प्रदीप, मयंक, राशिद, डेविड,शौकत, रणवीर सिंह, अवनीश,नरेन, शेखर और उसके जूनियर साथियों में सबसे ज्यादा मित्रवत सम्बन्ध रखने वाले सोनल के बीच दांत कटीं रोटी वाली दोस्ती थी। परन्तु रामू और नवनीत की दोस्ती पूरे शास्त्री बाग में सुर्खियां बनी हुई रहती थी।
चाहे क्रिकेट खेलने के वक्त का समय हो  या फुटबॉल के समर में प्रतिद्वंद्वी की भांति अपने दोस्तों से खेल में अव्वल रहने की बात हो।सब जगह दोनों की उपस्थिति एक मायने रखता था।
सब लोग एक की अनुपस्थिति में दूसरे से कारण पूछने लगते थे।
यह जीवन्त दोस्ती की निशानी थी।
मोहल्ले के हर उत्सव और त्योहार में दोनों के नेतृत्व में ही पूरे आयोजन की व्यवस्था की जाती थी।
यह दोस्ती लोगों को खटकने  लगीं थीं। रामू के सभी दोस्त भी अक्सर बातचीत में यह कहते रहते थे कि दोस्ती हो तो रामू और नवनीत जैसी नहीं तो दोस्ती न हो तो ही अच्छा है।
यह बातें शास्त्री बाग मुहल्ले में एक नजीर बन चुका था।
फिर एक दिन क्रिकेट खेलने के दौरान दोनों दोस्तों में रन आउट होने की स्थितियां ऐसी बदलाव ला दी कि दोनों ख़ास दोस्तों में अनबन हो गई।
अनबन  ऐसा कि रामू और नवनीत के दोस्तों की बड़ी जमात  दोनों के बीच उत्पन्न हुई गलतफहमियां को दूर करने में असफल रहे।
ऐसी गलतफहमी कभी कभार उत्पन्न हो जाती है जो वर्षों की दोस्ती में ग्रहण लगा देती है।
यही वाक्या रामू और नवनीत के बीच क्रिकेट खेलने के दरम्यान आउट होने के कारण हुआं था और दोनों के बीच गलतफहमी पैदा हो गई थी कि हो न हो इसमें नवनीत का हाथ है।इसी प्रकार नवनीत के मन में रामू का चेहरा सामने आने लगा था।
मोहल्ले में अक्सर दोस्तों की टोली मिलता जुलता रहता था।
दोनों की उपस्थिति भी रहतीं थीं परन्तु संवाद शून्य रहता था।
मयंक और राशिद ने बहुत कोशिश किए परन्तु कुछ बातें नहीं बन सकी।
नरेन और शेखर ने अपने घर में एक गुप्त बैठक कर दोनों की गलतफहमियां दूर करने का भरपूर प्रयास किया परन्तु यहां भी कामयाबी हासिल नहीं हो सका।
प्रदीप और अवनीश की हार्दिक इच्छा थी कि किसी तरह यह दोस्ती पुनः अपनी राह पकड़ लें परन्तु दोनों के बीच अहम् बहुत बड़ी बाधा थी जिसके कारण यह सम्भव नहीं हो रहा थी।
अब रामू और नवनीत की दोस्ती को पुनः जीवित करना असम्भव लग रहा था।
फिर तब मयंक ने एक तरकीब बताई।
उन्होंने कहा कि इस बार हमारे घर में बड़े भैया को प्रोमोशन मिला है। बड़े अधिकारी हो गये हैं। इसलिए मां बाबूजी ने मिलकर पूरे मोहल्ले वाले को होली उत्सव में शामिल होने की योजना बनाई है।उस दिन होली उत्सव में होली हुड़दंग के साथ साथ आर्केस्ट्रा का संगीतमय प्रोग्राम रखा गया है। फिर रंग गुलाल के बाद होली उत्सव में ख़ान पान की व्यवस्था की गई है। मोहल्ले के सभी परिवारों को निमंत्रण देने की योजना बनाई गई है।
इसमें बैर भाव भूलकर सबको आने का अनुरोध किया गया है।
इसलिए मैं अपने आप जाकर दोनों दोस्तों को निमंत्रण देंगे।
दोनों के पापा मम्मी को पहले ही मां ने आमंत्रित कर दी है।
मुझे उम्मीद है कि इस होली उत्सव के रंगारंग कार्यक्रम में रामू और नवनीत की दोस्ती ज़रूर मुकाम हासिल करेगी।
होली के त्योहार के तय समयावधि में मयंक के घर को खूब सजाया गया था। सभी मोहल्ले वाले निमंत्रण पाकर खूब खुश थे। आर्केस्ट्रा के कार्यक्रम होने के कारण रामू और नवनीत के सभी दोस्तों के बीच काफी उत्साह था।
सब लोग बारी- बारी से आकर मयंक के माता-पिता को गुलाल लगाकर अभिवादन करते हुए होली उत्सव में शामिल होकर उत्साहित लग रहे थे। मिठाईयां बांटी जा रही थी। फिर पुआ पुरी और ठंडाई की पूरी व्यवस्था थी।सब लोग होली मिलन के बाद पुआ पुरी का आनन्द ले रहे थे।
फिर एक एक करके रामू और नवनीत के दोस्तों की बारी आई।
मयंक के पिता को रामू और नवनीत के बीच पक्की दोस्ती में आईं दरार की पूरी जानकारी थी। स्टेज पर रामू के आने पर रामू ने सबसे पहले मयंक के माता-पिता के  पैरों पर गुलाल लगाकर आशीर्वाद लिया। आशीर्वाद लेने के क्रम में मयंक के माता-पिता  ने रामू को ढेर सारी होली उत्सव की बधाईयां दी। इसके बाद दोनों प्यार से रामू को अपने बगल में बैठा लिए। थोड़ी देर बाद नवनीत की बारी आई। उसने भी स्टेज पर चढ़कर सबसे पहले मयंक के माता-पिता के चरणों में गुलाल लगाकर आशीर्वाद लिया।
वह मयंक के पिता के हाथों होली की मिठाई पाकर बहुत खुश हुआ। फिर वह स्टेज से उतरने ही वाला था कि मयंक के पिता ने नवनीत को अपने दाहिने और बुलाया और फिर थोड़ी देर में ही रामू को अपनी बायी ओर आकर खड़ा होने के लिए कहें। बुजुर्ग की बातें मानना जरूरी था क्योंकि रामू मयंक के पिता को अपने पिता समान समझता था। फिर उन्होंने प्यार से दोनों दोस्तों को स्टेज पर ही गले मिलकर होली की बधाई एक दूसरे को देने के लिए कहें।
दोनों ने इसे अपने अभिभावक का आदेश समझकर तुरंत गले लगा कर एक दूसरे को होली की ढेर सारी बधाइयां दी। मयंक के पिता ने दोनों के हाथों में एक -एक लड्डू देकर एक दूसरे को खिलाने का प्यार भरा आदेश दिए। दोनों ने एक साथ मिठाई खिलाई और गले लगकर एक दूसरे को बधाई दी।पूरे पंडाल में ज़ोर ज़ोर से तालियां बजने लगीं। तालियों की गुंज से पूरा माहौल खुशनुमा रंग में तब्दील हो गया। मयंक की इस योजना ने दो पक्के दोस्तों को एक साथ कर दिया था।
सब तरफ एक ही बातें करते हुए लोग चर्चा करने में मशगूल थे कि आखिर गुलाल की खुशबू ने दो जिगरी दोस्त को फिर एक जो बना दिया था।
आज़ भी मयंक के घर में मनाई गई  होली उत्सव शास्त्री बाग मुहल्ले की एक यादगार होली की शाम के रूप में याद की जाती है।
— डॉ. अशोक

डॉ. अशोक कुमार शर्मा

पिता: स्व ० यू ०आर० शर्मा माता: स्व ० सहोदर देवी जन्म तिथि: ०७.०५.१९६० जन्मस्थान: जमशेदपुर शिक्षा: पीएचडी सम्प्रति: सेवानिवृत्त पदाधिकारी प्रकाशित कृतियां: क्षितिज - लघुकथा संग्रह, गुलदस्ता - लघुकथा संग्रह, गुलमोहर - लघुकथा संग्रह, शेफालिका - लघुकथा संग्रह, रजनीगंधा - लघुकथा संग्रह कालमेघ - लघुकथा संग्रह कुमुदिनी - लघुकथा संग्रह [ अन्तिम चरण में ] पक्षियों की एकता की शक्ति - बाल कहानी, चिंटू लोमड़ी की चालाकी - बाल कहानी, रियान कौआ की झूठी चाल - बाल कहानी, खरगोश की बुद्धिमत्ता ने शेर को सीख दी , बाल लघुकथाएं, सम्मान और पुरस्कार: काव्य गौरव सम्मान, साहित्य सेवा सम्मान, कविवर गोपाल सिंह नेपाली काव्य शिरोमणि अवार्ड, पत्राचार सम्पूर्ण: ४०१, ओम् निलय एपार्टमेंट, खेतान लेन, वेस्ट बोरिंग केनाल रोड, पटना -८००००१, बिहार। दूरभाष: ०६१२-२५५७३४७ ९००६२३८७७७ ईमेल - ashokelection2015@gmail.com