बाल कहानी

तीन परियां

नर्मदा नदी के किनारे तीस हजार वर्ग हेक्टेयर में फैले हुए शान्ति वन में राजा शेखर शेर और उसके तमाम साथियों का सुन्दर संसार था। सब लोग मिलकर रहते थे। किसी को कभी भी किसी तरह की दिक्कत नहीं होती पाईं गईं।
वहां उसी वन में राजा शेखर शेर के दरबार में उपस्थित साथियों को सम्मान देने और उन्हें अपने साथी के रूप में स्वीकार करने की बातें बहुत अच्छी लगती थी।
एक दिन स्वर्ग से सुन्दर तीन परियां उतरीं। खुशनुमा रंग में रंगी शान्तिवन की खुबसूरती को देखकर तीनों परियों ने यहां ही रहने का निर्णय लिया।
स्वर्ग से उतरी तीनों परियों ने निश्चय किया कि वो तीनों इसी शान्ति वन में राजा शेखर शेर के सानिध्य में ही रहेंगी।
तीनों परियों मे काफी दोस्ती थी। इसलिए बातें बन गई।
तीनों परियों के पास अब शान्ति वन में निश्चित होकर रहने का एक सुन्दर अवसर मिल गया था।
यह बात धीरे- धीरे राजा शेखर शेर के दरबार में पहुंच गई।सब जंगल के साथियों को तीनों परियों के आने और शान्ति वन में रहने की बातों में सच्चाई है अथवा कि नहीं ,की जांच हेतु राजा शेखर शेर  ने अपने सबसे विश्वसनीय सैंडी हाथी को इस जांच पड़ताल की जिम्मेदारी सौंपी।
सैंडी हाथी ने बड़े ही सफलता से अपनी जिम्मेदारी निभाई।
सैंडी हाथी की जांच में इस बात की पुष्टि हो गई कि सही में तीनों परियां शान्ति वन में स्थायी रूप में रहने लगीं हैं। सैंडी हाथी ने इसकी सूचना शान्ति वन के राजा शेखर शेर को दे दीं।
अब राजा शेखर शेर की इच्छा हुई कि क्यों नहीं तीनों परियों को अपने राजमहल में ही रखा जाए।
यह सबकुछ वह अपने राजा होने और तीनों परियों को अपने नियंत्रण में रखने के उद्देश्य से ही राजा शेखर शेर ने सोचा।
कानों- कान यह खबर शान्ति वन में फ़ैल गई।अब तो तीनों परियों को परतंत्र अवस्था में रहने की स्थिति का डर सताने लगी।
तीनों परियों में काफी मिल्लत थी। तीनों परियों ने आपस में बातचीत कर राजा शेखर शेर के इस योजना को खत्म करने की योजना बनाई।
परी रूपवती  ने तुरंत शान्ति वन छोड़ कर चले जाने की बात कही।
इसके बाद परी रत्नावली ने अपनी बात कही।
रत्नावली कहीं कि अरे मेरी सहेलियां, इतना क्यों घबरातीं हो।
यह बात ग़लत भी तो साबित हो सकती है।
फिर राजा शेखर शेर की योजना को जानने के बाद ही निर्णय लेने की बात हम-सब को सोचना चाहिए।
अब बारी परी फूलमनी की थी।
फिर परी फूलमनी कहीं, मुझे तो शान्तिवन का हरा- भरा संसार बहुत सुंदर लगता है।
मैं अन्त तक यहां लड़ते हुए अपने बचाव की कोशिश करूंगी।
फिर तीनों परियों मे से रूपवती ने स्वयं के निर्णय को तबज्जों दी और शान्ति वन को छोड़कर कोमल वन का रूख़ कर ली।
अब राजा शेखर शेर ने परियों को पकड़ने के लिए नंदू लोमड़ी के नेतृत्व में तीन सदस्यीय टीम का गठन कर दिए।इस टीम में प्रतीक नेवला और उत्पल बन्दर को चयनित किया गया ।
यह खबर मिलते ही  परी रत्नावली अपनी बुद्धिमत्ता दिखाते हुए राजा शेखर शेर के द्वारा बनाए गए जांच दल में शामिल तीनों के आने के पहले ही मानव वन को अपना घर मानकर वहां से निकल पड़ी।
तभी चतूर नंदू लोमड़ी की टीम प्रतीक नेवला और उत्पल बन्दर के साथ वहां पहुंच गई।
प्रतीक नेवला के निशानदेही पर उत्पल बन्दर ने अपना तेज़ दिमाग लगाया।
नंदू लोमड़ी की सुझबुझ से परी फूलमनी तीनों के कब्जे में आ गई।
अब वह पछता  रही थी कि काश वह अपनी पक्की सहेलियों की  की बात मान ली होती तो राजा शेखर शेर के द्वारा बनाए गए जांच दल के चंगुल में नहीं फंसती।
परन्तु अब तो काफी देर हो चुकी थी।अति आत्मविश्वास से भरे हुए रहने से यहीं दण्ड मिलता है।
अब वह राजा शेखर शेर के महल में रहने लगीं थीं परन्तु ज़िन्दगी की खुशियां खत्म हो गयी थी।
— डॉ. अशोक

डॉ. अशोक कुमार शर्मा

पिता: स्व ० यू ०आर० शर्मा माता: स्व ० सहोदर देवी जन्म तिथि: ०७.०५.१९६० जन्मस्थान: जमशेदपुर शिक्षा: पीएचडी सम्प्रति: सेवानिवृत्त पदाधिकारी प्रकाशित कृतियां: क्षितिज - लघुकथा संग्रह, गुलदस्ता - लघुकथा संग्रह, गुलमोहर - लघुकथा संग्रह, शेफालिका - लघुकथा संग्रह, रजनीगंधा - लघुकथा संग्रह कालमेघ - लघुकथा संग्रह कुमुदिनी - लघुकथा संग्रह [ अन्तिम चरण में ] पक्षियों की एकता की शक्ति - बाल कहानी, चिंटू लोमड़ी की चालाकी - बाल कहानी, रियान कौआ की झूठी चाल - बाल कहानी, खरगोश की बुद्धिमत्ता ने शेर को सीख दी , बाल लघुकथाएं, सम्मान और पुरस्कार: काव्य गौरव सम्मान, साहित्य सेवा सम्मान, कविवर गोपाल सिंह नेपाली काव्य शिरोमणि अवार्ड, पत्राचार सम्पूर्ण: ४०१, ओम् निलय एपार्टमेंट, खेतान लेन, वेस्ट बोरिंग केनाल रोड, पटना -८००००१, बिहार। दूरभाष: ०६१२-२५५७३४७ ९००६२३८७७७ ईमेल - ashokelection2015@gmail.com