लेख

शिक्षा, संचार और सरकार

आज बात सिर्फ सरकारी तंत्र के शिक्षा और दूरसंचार की तथा इससे जुड़े लोगों की होगी जहां एक ओर शिक्षा के माध्यम से मानसिक व शारीरिक विकास की पटकथा लिखी जाती है वहीं दूसरी ओर संचार के माध्यम से प्रदेश व देश के विकास की गाथा गाई जाती है वर्तमान समय में यह दोनों किस हद तक अपने कर्तव्यों के प्रति दृढ दिखते हैं और विकास की मुख्यधारा में इनकी कितनी अहम भूमिका पायी जाती है। आज हर व्यक्ति शिक्षित एवं जागरूक हो चुका है तो सरकार को जागरूकता से सम्बन्धित नुक्कड़ नाटक क्यों कराने पड़ रहें हैं तथा प्रदूषण/पयार्वरण को लेकर सरकार को गांव-गांव में कैम्पों का आयोजन क्यों करना पड़ रहा है। आज समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के पास मल्टीमीडिया जैसे संसाधन उपलब्ध हैं संसद से लेकर सड़क तक की सूचना आज का हर व्यक्ति चंद मिनटों में हासिल कर रहा है, जमीन से लेकर आसमान तक फैले नेटवर्क में सरकारी संचार व इस संचार को समझने वा परखने की शिक्षा में सरकारी तंत्र की क्या भूमिका है।

आज पूरी दुनियां के लोग बहुत तेजी से स्वार्थी बनते जा रहे हैं और स्वार्थीपन की शिक्षा हम आने वाली पीढ़ी को भी देते जा रहे हैं! कभी सोंचा है ? कि हर क्षेत्र में प्रथम स्थान प्राप्ति की दौड़ क्या है! जी हां यहीं से हम अपने बच्चों अथवा छात्रों को स्वार्थी और मतलबी बनने की शिक्षा देकर उसकी दिशा और दशा को बदलने के लिये रातोदिन प्रयास करते नजर आ रहे हैं! प्रथम स्थान हांसिल करने का साफ अर्थ है कि आपको किसी के साथ नही चलना है, किसी के साथ कोई सहानुभूति नही रखनी है! कोई फेल हो रहा है होने दो! कोई असफल होकर सिर पटक रहा है तो पटकने दो! तुम्हे कोई सांत्वना नही देनी है! तुम अपनी सफलता का मंत्र किसी से साझा नही नही करोगे और तुम किसी प्रकार की मदद किसी की नही करोगे! बस तुम अपना देखो और आगे बढ़ो। वास्तव में देखा जाये तो आज हम अपने बच्चों वा छात्रों को संस्कारी शिक्षा न तो दे पा रहे हैं और न ही दिला पा रहे हैं और न ही दिलाना चाहते हैं, वर्तमान का दौर पढ़ाई पढ़ कर एक नौकर बनने का है और नौकरी हांसिल करके अपने सभी साथी -संगती को व आस पास के लोगों को नींचा दिखाने तक ही शिक्षा का स्तर सिमट कर रहा गया है जबकि वास्तविक शिक्षा का अर्थ है कि शिक्षित होकर सभी के प्रति सम्भाव रखना और वाणी में मधुरता रखना और अपने व्यवहार को सरल और सौम्य रखना क्योंकि विचार और व्यवहार से ही तुम्हारी शिक्षा की पहचान होती है वरना बड़ी से बड़ी हांसिल की गयी डिग्री सिर्फ कागज का टुकड़ा है।

सम्पूर्ण देश में शिक्षा सिर्फ दो प्रकार की पायी जाती है औपचारिक शिक्षा तथा अनौपचारिक शिक्षा वहीं औपचारिक शिक्षा के लिये समाज के लोगों के पास दो रास्ते हैं एक सरकारी संस्थान दूसरा गैर सरकारी संस्थान, वर्तमान समय में यह अधिकांश देखने को मिल रहा है कि गैर सरकारी संस्थानों से छात्र प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण करके अपनी सफलता का परचम लहराते नजर आते हैं वहीं दूसरी ओर सरकारी संस्थानों से शिक्षा प्राप्त करके सिर्फ उर्त्तीण नजर आते हैं सरकारी संस्थानों की शिक्षा पर उस दिन गंभीरता से विचार करना चाहिए जिस दिन छात्रों का परीक्षाफल आया हो उस दिन इस बात की समीक्षा की जानी चाहिए कि जो भी छात्र जनपद स्तर व प्रदेश स्तर पर अव्वल आयें हैं वह किस शिक्षण संस्थान से ताल्लुक रखते हैं ? वर्तमान में समाज का जागरूक व्यक्ति सरकारी विद्यालय में अपने बच्चों को भेजने से कतरा रहा है बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि जागरूक लोगों के घरों के बच्चें प्राथमिक अथवा पूर्व माध्यमिक विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते हुये नही दिखाई पड़ते हैं किसी ने यह नही सोंचा है कि ऐसा क्यों हो रहा है ? प्राथमिक अथवा पूर्व माध्यमिक विद्यालय में नियुक्त अध्यापक स्वयं गैरसरकारी संस्था की सीढ़ी से होकर सरकार की संस्था के विद्यालय में अध्यापक के पद पर नियुक्त होते हैं इसलिये इनके बच्चे भी निजी संस्थानों में शिक्षा ग्रहण करते पाये जातें हैं भला ऐसा क्यों ? क्या इन अध्यापकों को परिषदीय विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा पर विष्वास नही है, उनके द्वारा दी जाने वाली शिक्षा गुणवत्तापूर्ण नही है। अपने देश की सबसे बड़ी विडम्बना एक और देखने को मिल रही है कि जो देश के नेता देश में विकास की गंगा बहाने और देश को विकासित करने की बात करते हैं उन्ही के घर के छात्र विदेशों में शिक्षा ग्रहण करते नजर आते हैं। अब वह दौर बीत चुका है जिस दौर में गांव के सरकारी स्कूल से पढ़े छात्र किसी बडे़ प्रशासनिक पद पर पहुंचते थे अब तो यह समय चल रहा है यदि आपको अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दिलानी है तो पहले गांव से बहार निकलो या बच्चे को निकालो तभी बच्चे को नौकर बनने की उचित शिक्षा मिल पायेगी नही तो सिर्फ नुक्कड़ नाटक देखने तक ही सीमित रह जायेगा।

वर्तमान समय में जमीन से लेकर आसमान तक संचार के माध्यम से सारे कार्य सम्पन्न किये जा रहें हैं एक जमाना था जब भारत संचार निगम लिमिटेड द्वारा गांव में एक टावर लगा कर टेलीफोन की व्यवस्था होती थी जिसके माध्यम से दूर देश अथवा प्रदेश में रहने वाले अपने परिवार के लोग अपनों से संपर्क स्थापित करते थे भले ही गांव में किसी का फोन कभी कभार ही आता रहा हो फिर भी एक बार ही बात करके सभी हमेंशा खुश रहते थे और संचार व्यावस्था को धन्यवाद कहते थे धीरे धीरे समय बीतता गया लोगों की सुविधा के लिये भारत संचार निगम लिमिटेड द्वारा पीसीओ की व्यावस्था की गयी जो गांव के बाहर चौराहों पर बड़ी आसानी से मिल जाया करते थे फिर अचानक संचार के क्षेत्र में एक क्रान्ति आयी भारत संचार निगम लिमिटेड द्वारा मोबाईल के लिये सिम कार्ड का निर्माण किया गया, यह सिम कार्ड धीरे धीरे हर व्यक्ति के पास पहुंचने लगा भारत संचार निगम लिमिटेड द्वारा संचार व्यावस्था का विस्तार किया गया पूरा देश अपने साथ एक मोबाइल रख कर अपनों से हैलो हैलो करने लगा कि अचानक 2004 के बाद बीएसएनएल को किसी की नजर लग गयी इस सरकारी संस्था को गैरसरकारी संस्थान नीचा दिखाने लगे और नयी- नयी योजनाओं को परोस कर बीएसएनएल का विस्तार कम करने लगे आज तो बीएसएनएल ऐसी स्थिति में पहुंच गया है कि आम आदमी ने भी बीएसएनएल की व्याख्या भाई साहब नही लगेगा के नाम से करता है। देश में शिक्षा और संचार ही ऐसा एक माध्यम है जिससे हम उच्च से उच्चतम शिखर तक बड़ी ही सुगमता से पहुंच सकते हैं, इसलिये सरकार को इससे जुडे गैरसरकारी संस्थानों को सामने रख कर स्वयं की समीक्षा अवष्य करनी चाहिए और आज हम ऐसी हालत में क्यों पहुँच गए हैं इस पर विचार अवष्य करना चाहिए।

राजकुमार तिवारी (राज)
बाराबंकी उ0प्र0

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782