कविता

/ मनुष्यों की दुनिया में /

खाना पहले उनको दो
जो सड़कों में, गलियों में
भीख माँगते नज़र आते हैं
असहाय अवस्था को पारकर
आगे बढ़ने में असफल हैं
पराजित हैं वे अपने जीवन में
आघात हुई है उनके मन पर
देह की सुधा भी खो बैठे हैं
पागल बनकर निकले हैं
उनके लिए न मकान होता है
और न कोई मंजिल,
चौराहे पर, किसी पेड़ के नीचे
या किसी मंदिर की सीढ़ियों पर
अपनी जिंदगी काट देते हैं
नहीं है उनके पास दुपट्टा
सर्दी, गर्मी का भेद नहीं
रात हो या दिन इसकी सुध नहीं,
सामाजिक गतिविधियों की परवाह नहीं
कुत्तों – जानवरों के बीच, फर्श पर
धूलि – धूसरित, मट – मैले नज़र आते हैं
इलाज़ हों उनका, स्वस्थ हो जाएँ
इंसान की अवस्था फिर से
उनके जीवन में आ जाएँ,
योजना हो हमारी तो पहला उनका हो
असहाय लोगों का सहारा हो
वर्ण-वर्ग, धर्म, जाति परंपरा को पारकर
हरेक में असलियत का विकास हो
स्वीकार करें एक दूसरे का
प्रेम, भाईचारे का आचार हो
परस्पर सहयोग, सहकार हो आपस में
संकुचित भावजाल से मुक्ति
मानव मूल्यों की उन्नति हो
मनुष्यों के इस दुनिया में ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।