धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

आदर्श महासती माँ सीता

जिस भारतवर्ष में आपने जन्म लिया है आज वही धरा मेरी भी जन्म भूमि है। कालभेद हो सकता है किंतु मेरी भावनाओं में आप जीवंत हो मेरी कल्पनाओं में आप साक्षात मूर्तिवंत हो।हे माता आपके अनुपम रूप लावण्य को इस भारतवर्ष की बेटियाँ जान ले तो कभी वर्तमान की  नायिकाओं को आदर्श मानने का भाव उनके मन में उत्पन्न नहीं होगा। पाश्चात्य संस्कृति उनके जीवन में आदर्श बनकर अपना साम्राज्य स्थापित नहीं कर सकेगी । माँ ऐसी सामर्थ्य इस भारत देश की हर बेटी में उत्पन्न कर दो क्योंकि वह बेटी भी इस घर में उत्पन्न हुई जो धरा आपके संस्कारों से संस्कारित है। भौतिक सुख आपको कभी आकर्षित नहीं कर पाए । वर्तमान सामाजिक परिपेक्ष्य में जब शील की महत्ता इस देश की  नारियाँ जैसे विस्मृत कर रही हैं ऐसी अवस्था में माता आपकी जीवन गाथा को जीवंत करना आज के समय की महती आवश्यकता  है ।रावण द्वारा हरण किए जाने पर भी आप धर्म से विचलित नहीं हुई। आपने दुख के समय में भी ईश्वर की शरण  नहीं छोड़ी ।राजाराम ने आपको घनघोर वन में छुडवाया आप मूर्छित हुई। कुछ समय पश्चात स्वयं को संभाल लिया उदय का विचार कर राम के लिए आपका जो संदेश था जिस लोक अपवाद के भय से आप ने सीता को छोड़ा उस लोक अपवाद के भय से धर्म को नहीं छोड़ना। गर्भावस्था ऐसी विपरीत परिस्थिति में श्रीराम के लिए आपका यह संदेश आपके पवित्र अंतर्मन से परिचित करा देने के लिए पर्याप्त है। धन्य आपकी महानता धन्य हैआपके गर्भ संस्कार ।गर्भ से ही पुत्रों को धर्म के संस्कार देने वाली माता आप धन्य है। लव कुश जैसे वीर पराक्रमी और अतुल बल के धारी पुत्र जिन्होंने लौकिक विभूति को साधना और जीवन के चिरंतन सत्य पारलौकिक विभूति को साधकर इस भवभ्रमण का अंत कर शाश्वत सुख को प्राप्त किया। वह आप के संस्कारों का ही प्रतिफल है। आपकी ही तरह इस देश की हर माता अपनी संतान को धर्म के संस्कारों से संस्कारित कर दे तो इस सृष्टि की छवि अद्भुत होगी।  आप जिस पथ पर चली, मुझे भी ऐसी दृढ़ता ऐसी शक्ति दो कि मैं भी उसी पथ पर चल सकूँ। आप निज चैतन्यभूमि में समा गई। आपके जैसी मेरी परिणति हो कि मैं भी निजचैतन्य भूमि में सामाने की सामर्थ्य उत्पन्न कर सँकू। यही भावना है।अद्भुत है माता आपके जीवन का हर प्रसंग आपके गुणरूपी समुद्र को सीमा में बांध पाना असंभव है। इसी भावना के साथ मेरा यह नमन आपको समर्पित है ।मेरी भावांजलि आपके चरणों में अर्पित है।इस हृदय मंदिर में आप सदा के लिए समा जाओ।।हे माता बस पग -पग पर आप मेरा मार्गदर्शन करती रहो।हे माता आप से यह प्रार्थना है कि अंतर्मन को भी आपके जैसी महानता से सुशोभित कर दो। कौन कहता है कि सीता जी अब नहीं रही उन्होंने तो अपने शील के बल से इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया लेकिन सीता सिर्फ  इतिहास के पन्नों तक सीमित नहीं है, वो तो  संसार की सभी नारियों के हृदय में बसती है ।मुझमें  सीता है,आप में सीता है संसार की सभी नारियों में सीता है बस वह सीता सो रही है उसे जगाना है।जागाओ अपने अंतर की सीता को और अपने शील का महत्व जानो। जिस प्रकार सीता जी ने अपने माता-पिता द्वारा निर्णय किए गए विवाह संबंध को अपनाया उसी प्रकार आज की युवतियाँ अपने माता पिता की स्वीकृति को स्वीकारें और 36 टुकडों में कटने से बचें।
— मीना जैन दुष्यंत

मीना जैन दुष्यंत

निवास -गोविंदपुरा भोपाल मध्यप्रदेश M- 9826738861 Email- meenajain14@gmail.com परिचय - शिक्षा - एम .ए. ( हिन्दी ,संस्कृत ,समाजशास्त्र)बी. एड. एम. फिल. ,वैद्य विशारद 2)व्याख्याता (हिन्दी, संस्कृत) शिक्षक -धार्मिक ,आध्यत्मिक प्रवचनकार 3) सामाजिक सेविका -.दस वर्षों से अखिल भारतीय स्तर पर निःशुल्क युवक -युवती परिचय सम्मेलन आयोजित करना।मंच सञ्चालिका 4) वैवाहिक सम्बन्धों( में खटास पड़ने पर )काउंसलर की भूमिका 6)महिलाओं के उत्थान के लिए कार्यरत। 7) कोरोना के समय महती भूमिका निभाने पर कोरोना योद्धा सम्मान समाज जन से। 8) साहित्यिक अभिरुचि.. लेख ,कथा ,कविता ,आदि लिखने पर सम्मान प्राप्त।